एक पृथक राज्य के रूप में उत्तराखंड अब बीस बरस का हो चुका है। ऐसे में उत्तराखंड राज्य की विकास यात्रा का मूल्यांकन करना जरूरी है। पर वह करने से साथ-साथ यह भी जरूरी है की हम इसकी सामाजिक संरचना और उन सामाजिक-ऐतिहासिक कारकों की चर्चा करें जिसने राज्य के रूप में उत्तराखंड की अवधारणा की निर्मिति की।
Copy and paste this URL into your WordPress site to embed
Copy and paste this code into your site to embed