श्री विनोद पांडे मशरूम को एक वनस्पति विज्ञानी और उद्यमी के रूप में गहराई से समझते हैं। मशरूम से उनका रिश्ता सत्तर के दशक में बना। उत्तराखंड में मशरूम के इतिहास, उससे जुड़ी विभिन्न पहलों और योजनाओं के क्रियान्वयन के बारे में हमने उनसे विस्तार में चर्चा की जो ‘उत्तराखंड के पहाड़ों में मशरूम – इतिहास और भविष्य’ के रूप में प्रकाशित है।
इस लेख में हम उनसे बातें करेंगे उन पहलूओं के बारे में जिसे जानना एक किसान या उद्यमी के लिए बहुत जरूरी है। यहाँ उनकी ये बात हम फिर दोहराना चाहेंगे की “मशरूम की खेती परंपरागत खेती से पूरी तरह भिन्न है”। इसमें तकनीक की प्रधानता है इसलिए उत्पादकों को ठीक से तकनीक को समझना और अपनाना आवश्यक है। तकनीकी जानकारी के अभाव से पहाड़ों में रोजगार की एक बहुत बड़ी संभावना फल-फूल नहीं पाई।
विनोदजी, यदि मुझे मशरूम की खेती शुरू करनी हो तो ऐसी कौन सी ऐसी पाँच छह मुख्य बातें हैं जिसका ध्यान रखा जाना आवश्यक है?
देखिये सबसे पहले यह जान लें कि यद्यपि प्रयोगात्मक तौर पर कई अन्य मशरूमों का कृत्रिम उत्पादन किया जा रहा है, मुख्य रूप से दो ही मशरूमों का व्यापारिक उत्पादन संभव हो रहा है। पहला है बटन मशरूम (एगेरिकस बाइस्पोरस) और दूसरा ऑयेस्टर (प्लूरोटस प्रजातियां) मशरूम। ऑयेस्टर का अर्थ है सीपियाँ। यह नाम इसे इसकी शक्ल के आधार पर मिला है। बटन मशरूम (एगेरिकस बाइस्पोरस) और ऑयेस्टर (प्लूरोटस प्रजातियाँ) के उत्पादन तकनीकों में बहुत ही ज्यादा अंतर है।
बटन मशरूम में उगाने का माध्यम तैयार करने के लिए एक कम्पोस्ट तैयार की जाती है। ये कम्पोस्ट तैयार करना बहुत ही महत्वपूर्ण काम है। कम्पोस्ट यदि अधिक डिकम्पोज हो तो कम हो जाती है और ठीक से डिकम्पोज न हो तो उसकी उर्वरा शक्ति घट जाती है जिससे उसमें कई प्रकार के फंफूदों, बैक्टीरिया व नीमेटोड और माइटों का संक्रमण हो सकता है। इससे फसल खराब हो सकती है।
ऑयेस्टर (प्लूरोटस) में कम्पोस्ट बनाने का झंझट नहीं रहता है । सीधे पराल, भूसा या लकड़ी में लगा दिया जाता है। प्लूरोटस में आपको केवल कच्चे माल और बीज की उपलब्धता तक चिंतित रहना है। यहाँ तक कि बाजार यदि तत्काल उपलब्ध न हो तो भी इसे सुखा कर रखा जा सकता है। पर बटन मशरूम परजीवियों के संक्रमण के लिए बहुत ही संवेदनशील है और तुरंत बाजार न मिलने पर सुखाया भी नहीं जा सकता है। हाँ डिब्बाबंद जरूर किया जा सकता है। इसलिए क्या करें और क्या न करें यह बटन मशरूम के लिए ज्यादा मतलब की बात हैं ।
- सबसे पहले हमें इसके स्वभाव के बारे में जान लेना चाहिये। मशरूम एक कवक या फंजाई है। हम देखते हैं कि कवक बरसात में ही सबसे अधिक पैदा हो जाते हैं। जो यह बताता है कि यह एक विशेष प्रकार के वातावरण में पैदा होते हैं। ये तापमान और नमी के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं। इनकी विशेषता है कि ये अपनी वृद्धि और फ्रूटिंग के लिए विशेष तापमान चाहते हैं। बर्षा खत्म होते ही नमी तो बनी रहती है पर तापमान तेजी से गिर जाता है इसलिए ये समाप्त हो जाते हैं । जब हम मशरूम उगाते हैं तो हम इनके उगने की कृत्रिम परिस्थितियाँ पैदा करते हैं। हमें समझना होगा की प्रत्येक मशरूम के लिए यह परिस्थितियाँ अलग-अलग होती हैं।
- दूसरा महत्वपूर्ण बिन्दु है प्रशिक्षण। आमतौर पर किसान खेती के प्रशिक्षण को हल्के में लेते हैं। साथ ही हमारे यहाँ खेती का प्रशिक्षण प्रयोगशाला में काम करने कार्मिकों या वैज्ञानिकों के हाथों में दे दिया जाता है जो आमतौर पर व्यावहारिक या मशरूम के व्यापारिक पक्ष को नहीं समझते हैं। इसलिए ऐसा प्रशिक्षण ज्यादा काम का नहीं होता है। मेरी नजर में आजकल, और पहले भी, मशरूम के प्रशिक्षण का कोई सक्षम केन्द्र नहीं है। इसलिए उत्पादक किसान को स्वयं ही प्रशिक्षित होना होगा। जिसके लिए जरूरी है कि पहले बहुत कम पैमाने से काम शुरू करें। स्थापित इकाईयों में जायें और उनसे सीखें। मशरूम से संबधित साहित्य को पढ़ें।
- तय करें कि कौन से मशरूम का उत्पादन करना चाह रहे हैं। उत्पादन की दृष्टि से मशरूमों को दो श्रेणियां में बाँटा जा सकता है। पहला जो कृत्रिम कम्पोस्ट (सिंथेटिक कम्पोस्ट) पर निर्भर हैं जैसे बटन मशरूम और दूसरा ऑयेस्टर मशरूम जिसके सीधे सैल्यूलोज पर उगने के कारण कम्पोस्ट की जरूरत नहीं होती है। साथ ही रोगों से बचाव के लिए अत्यधिक प्रयास नहीं करने पड़ते।
- तय करें कि इसे शौकिया तौर पर कर रहे हैं या पूर्ण आजीविका अथवा आंशिक आजीविका के लिए। इसी आधार पर आपको तकनीक, कच्चा माल व बाजार के बारे में रणनीति बनानी होगी।
- यदि आप पहाड़ों में मशरूम उत्पादन करना चाह रहे हैं तो आपको ध्यान देगा होगा कि कच्चा माल कहाँ से आयेगा क्योंकि बटन मशरूम के लिए कच्चे माल के रूप में आपको गेहूँ के भूसे की बहुत ज्यादा जरूरत होगी। आज गेहूँ के भूसे की अत्यधिक माँग है। गाय-भैंस पालको से लेकर कई तरह के कागजों के निर्माण में इसका प्रयोग होने लगा है। यह भी ध्यान रखना चाहिए की भूसा कटाई के दौरान सस्ता मिलता है पर बाद में बहुत महँगा हो जाता है। इसके सूखे भार की तुलना में अधिक से अधिक बीस प्रतिशत तक उत्पादन हो सकता है यानि अगर आप 6 लाख रू0 सालाना की कमाई करना चाहते हैं तो आपको करीब 200 कुंतल या करीब 6 ट्रक भूसा चाहिये। भूसे का आयतन बहुत ज्यादा होता है इसलिए 6 ट्रक भूसा स्टोर करना आसान नहीं है। अगर आप मैदानों से कम्पोस्ट बना कर लायें या भूसे को किसी विधि से अत्यधिक दबाकर, जैसे रूई का परिवहन किया जाता है, तभी पहाड़ों में बटन मशरूम का व्यापारिक उत्पादन सफल हो सकता है।
- मशरूम के बीज, जिसे स्पॉन कहा जाता है, को हल्के में न लें। यह पता करें कि कहाँ पर सबसे अच्छा मशरूम का स्पॉन मिलता है। मेरी नजर में हिमाचल में सोलन में इस पर अच्छा काम हुआ है। इस मामले में उत्तराखण्ड की स्थिति बहुत बुरी है ।
अपने अनुभव के आधार पर, मशरूम की खेती में सफलता के लिए, आप किसान या व्यवसायी को क्या क्या न करने की सलाह देंगे?
मुझे लगता है की मशरूम की खेती में सफलता के लिए सभी जरूरी कदम उठाने के साथ साथ ये भी जरूरी है की हम कुछ चीजें ना करें। हम अक्सर इन बातों पर ध्यान नहीं देते जिसके कारण बाद में पछताना पड़ सकता है। जिन मुख्य बातों का ख्याल रखना है वो इस प्रकार से हैं –
- मोटर मार्ग से दूर के इलाकों में कदापि इकाई की स्थापना न करें क्योंकि इसका कच्चा माल बहुत ज्यादा और हल्का होता है। आदमी से ढुलाई बहुत ही महँगी साबित होगी। इसी तरह उपयोग हो चुके कम्पोस्ट को फिकवाना भी बहुत महँगा हो जायेगा।
- उपयोग किये हुए कम्पोस्ट को ईकाई के नजदीक कभी न फेंके। उसमें परजीवी पनपेंगें और यही परजीवी धीरे-धीरे आपके कार्य स्थल को संक्रमित कर देगें जिससे आपको इनके बचाव के लिए बहुत ज्यादा खर्च करना पड़ेगा।
- इकाई व तकनीक प्रबंधन पर अपने अलावा दूसरे व्यक्ति पर ज्यादा निर्भर न रहें । उत्पादन की कई बारीकियाँ होती हैं। इसके लिए कहा जाता है कि मशरूम उगाना जितना साइंस है उतना ही कला भी। यह कला अनुभव से सीखी जाती है। अपनी इकाई से किसी दूसरे को विशेषज्ञ न बनने दें, यानी खुद को विशेषज्ञ बनायें। ये बहुत कीमती साबित होगा।
- बिना किसी योग्य प्रयोगशाला के संपर्क से व्यापारिक उत्पादन ना करें क्योंकि आपको कई स्तरों पर अपने कम्पोस्ट आदि के नमूनों की जाँच करानी पड़ सकती है ताकि बीमारियों से समय पर बचाव किया जा सके।
- पुराने घरों और झोपड़ियों जैसे कच्चे निर्माणों के अंदर मशरूम उत्पादन न करें क्योंकि इनमें कई किस्म के कवक और बैक्टीरिया घर करते हैं। निर्माण ऐसा होना चाहिये जो वायुरोधक हो और जिसे भाप की सहायता से अधिक तापमान पर पाश्चुराइज किया जा सके और जरूरत पड़ने पर हवादार भी बनाया जा सके। कोशिश रहे की इकाई मानवीय आबादी के एकदम निकट न हो।
यदि आप इन बातों का ध्यान रखते है तो मशरूम उत्पादन आपकी आर्थिकी को नया आयाम दे सकता है।
उत्तराखंड के पहाड़ों में मशरूम की खेती के बारे में हमने श्री विनोद पांडेजी से विस्तार में चर्चा करी। हमारी चर्चा ‘उत्तराखंड के पहाड़ों में मशरूम – इतिहास और भविष्य’ के रूप में प्रकाशित है।
- बरबूंद - April 13, 2024
- शिवालिक के कई दून - July 2, 2023
- तिब्बती व्यापारी - March 27, 2023
That’s a pretty handful of useful information.. Thank you..
बहुत अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद /
बिन्दु 4 : (बिना किसी योग्य प्रयोगशाला के संपर्क से व्यापारिक उत्पादन करें): ना करें होना चाहिये
आपका बहुत धन्यवाद। त्रुटि सुधार दी गई है।