कहते हैं कि चित्र भाषा के मोहताज नहीं होते। कि एक चित्र में कई हजार शब्द छिपे होते है। आधुनिक युग में एनिमेशन फिल्मों ने इस विचार को एक नया आयाम दिया है। इस लेख के जरिए हम आपको एक ऐसे फिल्मकार से रूबरू करा रहे हैं जो एनिमेशन फिल्मों को लेकर आपकी राय हमेशा के लिए बदल देगा।
जब भी एनिमेशन फिल्मों की बात होती है तो अमूमन लोग उसे बच्चों के लिए बनाईं गई कार्टून फिल्मों के रूप में देखते हैं। इस समझ को बनाने में डिज़्नी की एक मुख्य भूमिका रही है। डिज़्नी द्वारा निर्मित फिल्में, जो भाषा पर निर्भर नहीं थी, वे विश्व के कोने कोने तक पहुँची और सराही गई। ऐसा करते हुए इन फिल्मों ने एनिमेशन को विश्व भर में श्रव्य-दृश्य माध्यम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया।
आज हम जिन एनिमेशन फिल्मों की बात कर रहे हैं उन्हें स्टीव कट्टस ने बनाया है। स्टीव लंदन में रहते हैं और पेशे से चित्रकार व एनिमेटर हैं। एनिमेटर अर्थात वह व्यक्ति जो एनिमेशन फिल्में बनाता है। स्टीव का एक प्रिय विषय है आधुनिक समाज, जिसके बारे में वे अपनी चित्रकारी व एनिमेशन फिल्मों के जरिए अपनी राय व्यक्त करते हैं।
स्टीव कट्टस की सबसे पहली फिल्म जो मैंने देखी, वह थी ‘मैन’ अर्थात ‘मनुष्य’। 2012 में बनी इस फिल्म के जरिए स्टीव प्रकृति और मनुष्य के रिश्तों पर टिप्पणी कर रहे हैं। विश्व भर में करोड़ों लोगों ने इस फिल्म को देखा और सराहा। आप भी देखिए।
इसी विषय पर स्टीव की अगली टिप्पणी ‘मैन 2020’ है जो उन्होंने कोविड महामारी के समय हुए लॉकडाउन के दौर में बनाई। एक मिनट की यह फिल्म इतनी छोटी होते हुए भी एक बहुत बड़े सवाल छोड़ जाती है।
2020 में ही स्टीव कट्टस ने एक और फिल्म बनाई जिसका नाम है ‘टर्निंग पॉइंट’ अर्थात ‘मोड़’ या ‘बदलाव’। इस फिल्म में स्टीव ने मनुष्य और जीव जंतुओं के किरदारों में अदला बदली कर मनुष्य के व्यवहार के चलते जीव जंतुओं के अधिकारों में हो रहे हनन पर टिप्पणी की है।
इससे पहले 2017 में स्टीव कट्टस ने अपनी फिल्म ‘हैपीनिस’ अर्थात ‘खुशी’ के जरिए आधुनिक समाज और उपभोग के रिश्ते को दर्शाया। यह फिल्म हमें सोचने पर मजबूर कर देती है कि हम कहाँ हैं और कहाँ जा रहे हैं।
मैंने इन सब फिल्मों को कई बार देखा है। हर बार कुछ नया देखने को मिलता है इनमें। स्टीव कट्टस की फिल्मों की विषयवस्तु का अनोखापन और मौलिकता अद्वितीय है। अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए स्टीव को कई अन्तराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं।
स्टीव कट्टस के बारे में ज्ञानिमा पर लिखने और उनके कार्य को साझा करने के लिए मुझे मजबूर किया उनकी सबसे नई फिल्म ने जिसका शीर्षक है ‘अ ब्रीफ़ डिसएग्रीमेंट’ अर्थात ‘एक संक्षिप्त मतभेद’। कथानक एवं कलात्मक दृष्टि से यह एक अभूतपूर्व फिल्म है जिसमें शायद दर्शनशास्त्र की एक पूरी पुस्तक समाई हुई है। यह फिल्म केवल मनुष्यता ही नहीं अपितु आधुनिक राज्य तंत्र की भी एक तीखी समालोचना है।
स्टीव कट्टस महज 27 साल का एक युवा ऐनिमेटर हैं जिसका जन्म 1997 में हुआ। उनके सृजन कार्य को देखकर तो यही लगता है की वे सृजन की दुनिया में एक अमिट छाप छोड़ जायेंगे।
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