इवान इलिच और समाज की ‘डीस्कूलिंग’

इवान डोमिनिक इलिच एक दार्शनिक, धार्मिक विचारक, और सामाजिक आलोचक थे जो स्व-निर्देशित शिक्षा, या स्वशिक्षण, के बारे में अपने विचारों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके सबसे प्रभावशाली विचारों में से एक है ‘समाज की डीस्कूलिंग’। इलिच का मानना था कि पारंपरिक शिक्षा प्रणालियाँ अक्सर असली शिक्षा और व्यक्तिगत विकास को रोक देती हैं।

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एक सुखद 2023 की कामना

ज्ञानिमा की टीम की ओर से आप सभी पाठकों को हृदय से नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ। आशा है की 2023 आपको वह सभी खुशियाँ देगा जिसकी आप कामना करते हैं। हम आशा करते है की हम भी आप के लिए नए नए विषयों पर लेख प्रकाशित करते रहेंगे और आपका साथ बना रहेगा।

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चला गया 2021!

आप सभी तो नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएँ। इस बार नए वर्ष के आने से ज्यादा खुशी शायद पुराने वर्ष के जाने की है। बहुत कुछ सिखा गया वर्ष 2021। और बहुत बड़ी कीमत भी वसूल गया उसकी। आशा है की वर्ष 2022 नई संभावनाओं को ले कर आएगा।

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साझी उम्मीदों का 2021

वर्ष 2021 एक उम्मीद ले कर आया है कि कोविड19 का संकट टल जाएगा और मानवता की गाड़ी फिर अग्रसर होगी। हमने उत्तराखंड के विभिन्न इलाकों में रहने वाले साथियों से पूछा कि उनके कार्यक्षेत्रों व सपनों के संदर्भ में सन 2021 से उन्हें क्या उम्मीदें हैं। उन्हीं उम्मीदों को साझा करते हुए हम आशा करते हैं की 2021 आपके जीवन को नई स्फूर्ति और रंगों से भर दे।

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क्या आप शिक्षा की पैमाइश कर सकते हैं?

प्रो. पीटर ग्रे का एक सवाल है – “क्या आप जीवन के अर्थ को परिभाषित कर सकते हैं?” उनका कहना है की, “वक़्त आ गया है कि क़दम वापस खींचें और शिक्षा के उद्देश्य पर गंभीरता से विचार करें।“ इस लेख में प्रो. पीटर ग्रे ने शिक्षा के माप-जोख से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं।

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अलविदा मंगलेश डबराल!

कोरोना वायरस ने बहुत कुछ छीन लिया है इस दुनिया से। कई ऐसी क्षतियाँ हुई हैं जिनकी भरपाई करना इतनी आसानी से संभव नहीं होगा। 09 दिसंबर, 2020 को ऐसी ही एक क्षति के समाचार ने लोगों को स्तब्ध कर दिया। लोगों के प्रिय कवि, लेखक, पत्रकार, संपादक व अनुवादक मंगलेश डबराल नहीं रहे।

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वो तीन पहल जो बदल सकती हैं उत्तराखंड का भविष्य

आज उत्तराखंड स्थापना के बीस बर्ष पूरे हुए। इस अवसर पर ज्ञानीमा द्वारा आयोजित ‘उत्तराखंड विचार प्रतियोगिता’ के तहत जिस लेख को चयनित किया गया है उसके लेखक हैं पुणे के श्री जीवन सिंह खाती।

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मास्क हमारा, सबका सहारा

उत्तराखंड के ग्रामीण अञ्चल के लोगों को कोरोना से सावधानी इसलिए भी बरतनी होगी क्योंकि यहाँ चिकित्सा सेवाओं का अभाव है जिसके कारण खतरा बड़ सकता है। अतः इन फिल्मों को देखें ओर दिखाएँ, उत्तराखंड को कोरोना संक्रमण के खतरे से बचाएँ!

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