उत्तराखंड की वनाग्नि और अदालती आदेश

हर तरफ धुआँ ही धुआँ है। जंलते जंगलों का धुआँ। ऐसे में अदालती आदेश उन बादलों से लगते हैं जो अपनी बारिश से वनाग्नि बुझाने की क्षमता तो रखते ही हैं, धुएँ की पर्त को हटा कर हमें दूरदृष्टि भी प्रदान कर सकते हैं। ये अलग बात है की अवमानना की हवा अक्सर इन बादलों को नाकाम कर देती है।

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मैं कानूनी रूप से दोहरे दर्जे का नागरिक हूँ

सम्पूर्ण भारतवर्ष में जब कोई नागरिक संकट में होता है तो 100 डायल करता है। पर यह मूलभूत सुविधा मुझे उपलब्ध नहीं है। और मैं अकेला नहीं हूँ। उत्तराखंड के लगभग दो तिहाही लोग इस मूल अधिकार से पूर्ण रूप से वंचित है। और अदालतें भी इस अवैधता को स्वीकार करती हैं।

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