नैनीताल शहर से मेरा वर्षों का नहीं बल्कि सदियों का नाता रहा है। मेरे पुरखे और मैं इस शहर को बनते और बिखरते देखते आये हैं। शायद ही कोई और शहर हमारे पहाड़ों में हो जिसे अंग्रेज़ों ने बुनियाद से विकसित किया हो -एक ऐसा शहर जहाँ पहले से कोई बसासत न हो। मिसाल के तौर पर रानीखेत या लैंसडौन सरीखे कैंटोनमेंट टाउन्स नैनीताल से बिलकुल अलग रहे जबकि नैनीताल कमांड हेडक्वार्टर्स रहते हुए भी कैंटोनमेंट टाउन नहीं बना। सन् 1893 में भारतीय सेना को चार कमांड में विभाजित किया गया – पंजाब, बंगाल, मद्रास और बॉम्बे। नैनीताल बंगाल कमांड का हेडक्वार्टर बना। सन् 1905 में भारतीय सेना का फिर से पुनर्गठन हुआ। इस बार तीन कमांड बने – नॉर्दर्न, वेस्टर्न और ईस्टर्न। नैनीताल ईस्टर्न कमांड का हेडक्वार्टर बनाया गया और सन् 1907 तक यह शहर वह भूमिका निभाता रहा।
अगर थोड़ा इतिहास पर नज़र डाली जाए तो ब्रिटिश रिकार्ड्स में नैनीताल की चर्चा 1841 में दर्ज हुई, जब बैरन यहाँ पहली बार आया। मेरा मक़सद नैनीताल के इतिहास पर एक लम्बी चौड़ी जानकारी देना नहीं बल्कि कुछ ऐसे तथ्यों को पेश करना है जो इस शहर के तेजी से हो रहे आधुनिक विकास का समर्थन करते हैं। मिसाल के तौर पर, नैनीताल की बसासत के कुछ सालों के भीतर ही यहाँ सन् 1843 में पुलिस थाना और सन् 1845 में म्युनिसिपल बोर्ड का गठन हो गया था। सन् 1923 में नियमित बिजली की व्यवस्था भी हो गई। यह सभी तथ्य नैनीताल को एक ऐसे आधुनिक शहर का दर्जा देते हैं जिसमें समाज, विधि द्वारा स्थापित संस्थाओं के माध्यम से शासित किया जाने लगा था – ना कि पारम्परिक सामाजिक संस्थाओं द्वारा। अलग-अलग जगहों से आकर बसे लोग अपने साथ सामूहिक संस्कृति, जैसे जातिवाद, ले कर तो आए पर वह नैनीताल की संस्कृति में अन्य स्थानों की तरह हावी नहीं हो सकी। दरअसल नैनीताल में जाति से ज्यादा वर्ग हावी रहा जो की ब्रिटिश कल्चर की देन थी।
मेरे परदादा सन् 1870 के दौरान नैनीताल आए! वे तराई भाबर खाम स्टेट में नौकरी पाकर ऑफिस के एकाउण्ट सैक्शन में कार्यरत हुए थे। सन् 1909-10 में रिटायर होने के बाद एक घर खरीद कर, और दुकान बना कर उन्होंने कपड़े का कारोबार शुरू किया। मेरे दादा सन् 1884 में नैनीताल में जन्मे और उनके बाद हमारे परिवार में जो भी नैनीताल में जन्मा उन सभी का जन्म नैनीताल म्युनिसिपल बोर्ड में पंजीकृत है। यह आधुनिक और विधि द्वारा संचालित, शहर की एक मिसाल है।
हमारे परिवार जैसे कई अन्य परिवार, जो नैनीताल में कम से कम एक सदी से रह रहे हैं, उन सभी का नैनीताल के अतीत और वर्तमान, दोनों से, एक अलग ही तरह से नाता रहा है। नैनीताल शुरूआती वर्षों में ही, उस दौर के हिसाब से, एक पूर्ण आधुनिक शहर बन चुका था। यहाँ की आबोहवा, जो इसके शहर बनने में सबसे महत्वपूर्ण रही, के अलावा आधुनिक युग के महत्वपूर्ण पैमाने जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, थिएटर, संगीत, इत्यादि का यहाँ आगमन हो चुका था।
1970 के दशक तक नैनीताल में शिक्षा तथा स्वाथ्य का स्तर बहुत ऊँचा था। लोग दूरस्थ जगहों से इनका लाभ लेने यहाँ आते थे। स्कूली शिक्षा के अलावा यहाँ के डिग्री कॉलेज का भी अपना रुतबा। यह उत्तर प्रदेश के शीर्ष महाविद्यालयों में से एक था। म्युनिसिपल बोर्ड के सदस्यों में दूरदृष्टि भरपूर थी और वे शहर की वास्तविक प्रगति के लिए लगातार प्रतिबद्ध रहे। निर्माण कार्यों के लिए नियम काफी सख़्त रहे और जनता भी नियमों का पालन करती रही। लोगों में नागरिकता का भाव पीढ़ियों से हस्तांतरित होता रहा। मुझे अच्छी तरह याद है कि कैसे हम लोग नियमों का पालन करने से कभी नहीं चूकते थे। हमने कभी भी न तो सड़क पर कूड़ा डाला या सार्वजनिक स्थानों को गन्दा किया।
पर्यटन की दृष्टि से भी स्थिति अच्छी ही रही। होटल कुछ ही थे पर वे सभी सुविधाओं से लैस थे। आज से तुलना करें तो जनसँख्या का काफी कम प्रतिशत हिस्सा अपनी रोजी-रोटी के लिए पर्यटन पर निर्भर था। स्थानीय लोग पर्यटकों को काफी इज़्ज़त देते थे। ज़्यादातर पर्यटक लगभग हर साल आते थे और उनमें से कई तो महीने दो महीने रुका करते थे। आज की तुलना में भीड़ काफी कम थी और स्थानीय जनता भी सीज़न का लुत्फ़ उठती थी।
1980 के दशक में जब पंजाब और फिर कश्मीर में आतंकवाद बढ़ा तो नैनीताल जैसे अन्य सुरक्षित जगहों पर पर्यटन का काफी दबाव बढ़ने लगा। इस बीच नियमों में भी निरन्तर कुछ परिवर्तन होते रहे और म्युनिस्पल बोर्ड का भी स्वरुप बदल सा गया। निर्माण कार्यों में रुकावटें ख़त्म होने लगीं और नैनीताल भी ख़त्म सा होने लगा। शहर की पूरी क्षमता का दोहन करने के बावजूद इसका शोषण जारी रहा। जिस जगह पर्यटक एक शांत वातावरण की खोज में आते थे आज वे वहाँ पिकनिक मनाने आने लगे हैं । स्थानीय घरों को पहले गेस्ट हाउस और फिर होटलों में तब्दील किया जाता रहा।
हमारे देखते ही देखते शिक्षा – विद्यालयी और विश्वविद्यालयी- का क्षरण होने लगा। स्वास्थ्य व्यवस्था तो लगभग ख़त्म होने की कगार पर है। बुनियादी सुविधाओं का भी लगातार ह्रास हो रहा है। 1980 के दौर में जिस बिखरने की शुरुआत हुई थी वो अब शायद अपनी चरम पर है। मेरा नैनीताल इतना बिखर गया है कि कभी-कभी तो यह अपना भी नहीं लगता।
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महोदय नमस्कार,
प्राकृतिक सौन्दर्य और खुशगवार मौसम पर आधारित बसाये गये शहर आज की बढ़ती आबादी,आवश्यकताएं और उनसे बढ़ते प्रदूषण,जलवायु परिवर्तन के कारण अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं
जिन शहरों का स्थानीय प्रशासन,व्यवस्थाएं,
लोकल सेल्फ गवर्नेंस, शहर निवासीयों की जागरूकता शहर की सेहत के बारे में सचेत हैं तो शहर के विशिष्ट स्वरुप को संरक्षित और संवर्धित किया जा सकता है ।
हर एक शहर की, उसके संसाधनों की एक कैरिंग कैपेसिटी होती है जब इस कैरिंग कैपेसिटी में एक्स्ट्रा लोड पड़ने लगता है तो समस्याओं का बढ़ना शुरू हो जाता है इसलिए हमें एक सस्टेनेबल डेवलपमेंट मॉडल की जरूरत है जिससे हम अपने शहरों के नैसर्गिक स्वरुप को सहेज सकें ।
अंग्रेजी हुकूमत ने पूरे देश भर में उटी, वेलिंगटन दार्जिलिंग,शिमला,डलहौजी, नैनीताल,मसूरी,रानीखेत,लैंसडाउन जैसे अनेकों हिल स्टेशन बनाए. लेकिन आज आजादी के इतने सालों के बाद भी हमने नये हिल स्टेशन नही बनाए. जिससे आज हमारी रिहाईशी,पर्यटन,स्वास्थ्य लाभ और अन्य जरूरतें वाइड स्प्रेड होती, कुछ ही चुनिंदा स्थानों पर अनावश्यक दबाव नही पड़ता और वो भी अपने नैसर्गिक स्वरुप में बने रहते ।
रिगार्डस….