कैसे पहाड़? किसका उत्तराखण्ड?

फिर एक चुनाव प्रक्रिया पूर्ण हुई। नई सरकार बनी। कुछ दिनों तक चुनावी राजनीति पर चर्चा बनी रहेगी और फिर पाँच साल का सन्नाटा,और जब हम जागेंगे तब तक उत्तराखंड एक मैदानी राज्य बन चुका होगा! क्योंकि उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य ही नहीं बचेगा इसलिए पहाड़ बहस का मुद्दा भी नहीं रहेंगे। इस जटिल स्थिति से निजाद पाने के हमारे पास तीन तरीके हैं।

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शौका और राजस्थानी भाषा का अंतर्संबंध

उत्तराखंड की उत्तरी सीमा से लगी घाटियों के लोगों की संस्कृति के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। भारत तिब्बत व्यापार खत्म होने के पश्चात इन घाटियाँ की संस्कृति ही नहीं बोली/भाषा भी लुप्त होने की कगार पर हैं। सभी घाटियों के निवासी अपनी संस्कृति को बचाने के विभिन्न प्रयास कर रहे हैं। जोहार घाटी की शौका बोली को संरक्षित करने के सिलसिले में श्री गजेन्द्र सिंह पाँगती से एक बातचीत।

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कोविड सपोर्ट ग्रुप – सहयोग का अनूठा प्रयोग

यूँ तो सहयोग में अद्भुत ताकत है, पर भारत के अन्य राज्यों के विपरीत उत्तराखंड में गैर सरकारी संगठनों के बीच सहयोग के मामले थोड़ा कम ही सुनने में आते हैं। ऐसे में कोविड सपोर्ट ग्रुप का प्रयोग एक नई संभावना की ओर इशारा करता है।

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वो तीन पहल जो बदल सकती हैं उत्तराखंड का भविष्य

आज उत्तराखंड स्थापना के बीस बर्ष पूरे हुए। इस अवसर पर ज्ञानीमा द्वारा आयोजित ‘उत्तराखंड विचार प्रतियोगिता’ के तहत जिस लेख को चयनित किया गया है उसके लेखक हैं पुणे के श्री जीवन सिंह खाती।

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