बरबूंद

कुमाऊँनी समाज में बरबूंद बनाए जाने की परंपरा की तलाश में निकलें तो बहुत दिलचस्प कहानी दिखलाई देती है। दीवार पर उकेरे गए चटकीले रंगों वाले ये खूबसूरत भद्र दूर से देखने पर कालीन सा आभास देते हैं। कुमाऊँ की ऐपन परंपरा का शायद यह सबसे रंगबिरंगा रूप है।

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स्टीव कट्टस की जरूरी फिल्में

कहते हैं कि चित्र भाषा के मोहताज नहीं होते। कि एक चित्र में कई हजार शब्द छिपे होते है। आधुनिक युग में एनिमेशन फिल्मों ने इस विचार को एक नया आयाम दिया है। इस लेख के जरिए हम आपको एक ऐसे फिल्मकार से रूबरू करा रहे हैं जो एनिमेशन फिल्मों को लेकर आपकी राय हमेशा के लिए बदल देगा।

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मैं तुम्हारा कवि हूँ!

पहली बार जब विद्रोहीजी की कविता सुनी तो मन तृप्त हो गया। कहीं अंदर से आवाज आई – ऐसा होता है कवि ! इच्छा हुई की जानूँ इस कवि के बारे में। क्या यह कवि भी पैन पेंसिल से कविताएँ लिखता है या कोरा मन ही इसका कागज है? क्या कवि होना इसकी अभिव्यक्ति का हिस्सा है या इसकी अभिव्यक्ति ही एक कवि होना है?

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शौका और राजस्थानी भाषा का अंतर्संबंध

उत्तराखंड की उत्तरी सीमा से लगी घाटियों के लोगों की संस्कृति के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। भारत तिब्बत व्यापार खत्म होने के पश्चात इन घाटियाँ की संस्कृति ही नहीं बोली/भाषा भी लुप्त होने की कगार पर हैं। सभी घाटियों के निवासी अपनी संस्कृति को बचाने के विभिन्न प्रयास कर रहे हैं। जोहार घाटी की शौका बोली को संरक्षित करने के सिलसिले में श्री गजेन्द्र सिंह पाँगती से एक बातचीत।

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व्यावसायिक कुमाऊँनी गीत और स्त्री

शादी समारोह में बजने वाले कुमाउनी गीतों को सुनकर दिव्या पाठक को महसूस होता था कि पितृसत्ता की जड़ें कितनी मजबूती से अपनी पकड़ बनाये हुए हैं। उनका मानना है कि ऐसे गीतों की बढ़ती लोकप्रियता हमारे समाज की मानसिकता और स्त्रियों के प्रति उनके रवैये को भी साफ तौर पर पेश करती है। एक बातचीत।

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कौन देता है थल के बाजार को यूँ सीटी बजाने का हक?

आप ये लेख पढ़ें इससे पहले आपको आगाह करना चाहता हूँ की यह लेख ‘थल की बजारा’ के गीतकार व गायक पर किसी तरह का निजी प्रहार नहीं हैं। यह एक सवाल है हमारी सामंती व्यवस्था और सोच पर जिसे उत्तेजना नहीं अपितु समग्रता से देखने की जरूरत है।

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अलविदा मंगलेश डबराल!

कोरोना वायरस ने बहुत कुछ छीन लिया है इस दुनिया से। कई ऐसी क्षतियाँ हुई हैं जिनकी भरपाई करना इतनी आसानी से संभव नहीं होगा। 09 दिसंबर, 2020 को ऐसी ही एक क्षति के समाचार ने लोगों को स्तब्ध कर दिया। लोगों के प्रिय कवि, लेखक, पत्रकार, संपादक व अनुवादक मंगलेश डबराल नहीं रहे।

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मुखौटों की हिल जातरा

हिल जातरा उत्तराखंड का पारम्परिक लोक नाट्य उत्सव है। इस उत्सव में कलाकार अलग अलग रंगों और आकारों के मुखौटे पहन कर अभिनय करते हुए अपनी भागीदारी दर्ज करते हैं। यह लेख इस मुखौटों की दुनिया को डिजिटल चित्रों में उकेरने का एक प्रयास है।

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खेती का उत्सव – हिलजातरा

ग्रामीण जीवन में मनोरंजन की दॄष्टि से लोक नाट्यों का महत्वपूर्ण स्थान है। कुमाऊँ की सोर घाटी में आयोजित होने वाली हिलजातरा ऐसा ही एक लोकनाट्य है। खेतों में हाड़ तोड़ मेहनत से फसल की बुआई और उसके बाद कटाई से उपजा सुख लोक मनोरंजन के ऐसे तत्व है जो इस लोकनाट्य का संसार बुनते हैं।

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गमरा – भारत व नेपाल की साझी संस्कृति

गमरा उत्सव महाकाली नदी के दोनों ओर, कुमाऊँ और पश्चिमी नेपाल में, मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण लोक उत्सव है। गमरा में और प्रकॄति और मनुष्य के गहरे और आत्मीय रिश्तों की अभिव्यक्ति होती है। स्त्री केन्द्रित इस उत्सव में समूचा समाज गतिशील होकर एकता की अद्भुद बानगी पेश करता है।

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