चारधाम मार्ग के चौड़ीकरण के लिए गैरकानूनी रूप से कट रहे पेड़ों को लेकर सिटीजन्स ऑफ ग्रीन दून ने उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दर्ज की। दायर याचिका के आधार पर स्थिति के अवलोकन के लिए उच्चतम न्यायालय ने एच.पी.सी. बनाने का आदेश पारित किया। आदेश की कॉपी के लिए यहाँ क्लिक करें।
एच.पी.सी. के सदस्यों के मतभेद के चलते दो रिपोर्ट जमा की गईं। सितंबर 8, 2020 को सिटीजन्स ऑफ ग्रीन दून एण्ड अदर्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एण्ड अदर्स मामले पर जस्टिस रोहिन्टन फाली नारिमान, जस्टिस नवीन सिन्हा एवं जस्टिस इंदिरा बनर्जी के बेंच ने आदेश (सिविल अपील नंबर 10930 ऑफ 2018) जारी किया जिसका हिन्दी अनुवाद हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। यह एक अंग्रेजी आदेश का हिन्दी अनुवाद है अतः इसे किसी कानूनी दस्तावेज के रूप में न लिया जाए। आदेश में कई जगह MORTH शब्द का उपयोग किया गया है, जो ‘सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय’ (मिनिस्ट्री ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट एण्ड हाई वेस) का संक्षिप्त रूप है।
उच्चतम न्यायालय के आदेश का हिन्दी अनुवाद
अदालत ने भारत के विद्वान् सॉलिसिटर जनरल (महाधिवक्ता) श्री तुषार मेहता और प्रार्थी की ओर से विद्वान् वरिष्ठ अधिवक्ता श्री संजय पारिख को सुना।
इस कोर्ट के 8 अगस्त 2019 के आदेश के अनुसार एक हाई पवार्ड कमेटी (जिसे आगे एच.पी.सी. कहा जाएगा) का गठन किया गया, जिसे जुलाई 2020 तक अपनी रिपोर्ट जमा करनी थी। इस रिपोर्ट को बनाने और प्रस्तुत करने के प्रयत्न के लिए हम एच.पी.सी. को धन्यवाद देते हैं।
इस रिपोर्ट का वह आंशिक विवाद, जो आज हमारे सम्मुख है, वह रिपोर्ट के “कन्क्लूशनस् एण्ड रेकॉमेन्डेशनस्” (11.5) सेक्शन में है। यह विवाद रोड की चौड़ाई के बारे में है। जहाँ एक ओर एच.पी.सी. के 13 सदस्य MORTH के 2012 के सर्कुलर के पक्ष में हैं, कमेटी के चेयरमैन सहित पाँच सदस्यों का मानना है कि MORTH के 2018 (23 मार्च 2018 को प्रकाशित) सर्कुलर के अनुरूप काम हो।
हमने रिपोर्ट के निष्कर्ष और सिफारिशों का अध्ययन कर लिया है, खासकर भाग 1 के पृष्ठ 90-93। हमारा मानना है कि पृष्ठ 93 में दिए कारणों के मद्देनजर MORTH का 2018 सर्कुलर मान्य है। अतः केवल 2018 का MORTH सर्कुलर ही लागू होगा। 8 अगस्त 2018 को पारित अदालत के अन्य निर्देशों का कड़ाई से पालन किया जाए, जिसमें वे त्रैमासिक बैठकें निहित है जो ये सुनिश्चित करेंगी कि सिफारिशों का समयबद्ध तरीके से उचित पालन हो रहा है।
श्री तुषार मेहता, विद्वान् महाधिवक्ता, ने दलील पेश की कि 2018 का सर्कुलर भविष्य के लिए प्रस्तावित था। अदालत किसी आदेश के पूर्वप्रभावी होने का अर्थ भली भांति जानती है। अदालत जानती है कि आदेश के पूर्वप्रभावी होने का अर्थ यह है कि वह उन परियोजनाओं पर लागू नहीं होती है जो पूर्ण हो चुके हैं पर उन पर लागू है जो अभी चल रही हैं, जहाँ आगे बढ़ने के लिए वर्तमान स्थिति का अवलोकन जरूरी है। वर्तमान स्थिति का अवलोकन करने, और पर्वतीय इलाकों के पर्यावरण व पारिस्थितिकी के मद्देनजर, हमारा मानना है कि इस दलील का कोई औचित्य नहीं है।
श्री संजय पारिख, विद्वान् वरिष्ठ अधिवक्ता, ने दलील पेश की कि कई क्षेत्रों में भारी विनाश हो चुका है अतः पूरी गंभीरता के वृक्षारोपण करने की आवश्यकता है। हम इस बयान को दर्ज कर रहे हैं और हमें कोई संशय नहीं है कि इस कार्य का उचित निर्वहन किया जाएगा।
MORTH का 2018 सर्कुलर क्या है?
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा 23 मार्च 2018 को प्रकाशित सर्कुलर केन्द्रीय योजनाओं के तहत पहाड़ों में बन रहे राष्ट्रीय राजमार्गों और सड़कों के संबंध में है। सर्कुलर के अनुसार अगर किसी मार्ग पर प्रतिदिन 3000 से 8000 पी. सी.यू. (पैसेंजर कार यूनिट), सरल भाषा में कहें तो प्रतिदिन 3000 से 8000 गाड़ियां चलती हैं तो सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर होगी। अगर दो लेन का प्रावधान है तो ये चौड़ाई 7 मीटर होगी। पास देने की जगहों में सड़क की चौड़ाई 2.5 मीटर अधिक हो सकती है। इस भाग की अधिकतम लंबाई 12 मीटर हो सकती है। पास देने की जगहों का ये प्रावधान बारी बारी से सड़क के दोनों ओर होगा। यह कोशिश होनी चाहिए ही पास देने की जगह ऐसी जगह बनें जहाँ से दोनों दिशाओं के आने वाली गाड़ियों को साफ देखा जा सके। ऐसी जगहों के बीच की दूरी 500 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
पूरा सर्कुलर पढ़ने के यहाँ लिक करें।
आदेश से चारधाम परियोजना पर क्या असर पड़ेगा?
इस आदेश के अनुसार अब चारधाम मार्ग का चौड़ीकरण 5.5 मीटर से अधिक नहीं हो किया जा सकता। इसका सीधा अर्थ है कि चार लेन की सड़क बनाने के लिए जिस तरह पेड़ों और चट्टानों को काटा जा रहा था, उस पर अंकुश लग जाएगा। इससे जान-माल के नुकसान की गति थमेगी और शायद सरकार भविष्य में परियोजनाओं की घोषणा से पहले पर्यावरण के मुद्दों पर भी विचार करे।
अब सवाल यह है कि इस परियोजना के तहत जहाँ 12 मीटर की सड़कों के लिए कटान हो चुका है, उसका क्या होगा। उन भागों को अगर कच्चा छोड़ दिया गया तो वे आने वाले समय में नुकसान का कारण बन सकते हैं।
भूवैज्ञानिक डॉ. सरस्वती पी. सती के अनुसार, “अगर बाहरी 5.5 मीटर का डामरीकरण हो गया और अंदर की ओर के 6.5 मीटर के हिस्से को कच्चा छोड़ दिया गया तो आने वाले समय में, उस हिस्से का लेवल भू-कटाव के कारण पक्की सड़क से नीचे होता चला जाएगा। समय के साथ यह अंतर बढ़ता जाएगा और साथ में खतरा भी। हमने पहले भी देखा है कि न्यायालय के आदेश के चलते जब किसी बिजली परियोजना को बंद किया गया तो परियोजना के संचालक संभावित तबाही के मंज़र को जस का तस छोड़ कर चले गए। बर्बादी के कारण पर तो रोक लग गई, पर रोक लगने तक हो चुकी बर्बादी की भरपाई कभी नहीं की गयी।”
इस सम्बन्ध में स्वीकृत एच.पी.सी. रिपोर्ट में भी टिप्पणी की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सड़क के साथ-साथ एक 5 फुट चौड़ा उठा हुए पैदल मार्ग (आस्थापथ) का भी निर्माण होना चाहिए, जिसका उपयोग पैदल चलने वाले श्रद्धालु व स्थानीय निवासी कर सकें। यह मार्ग पहाड़ी की तरफ होना चाहिए और इससे साथ पानी की निकासी के लिए नालियाँ भी बननी चाहिए। पैदल मार्ग का डामरीकरण नहीं होना चाहिए। इसकी सतह घास या अन्य पर्यावरण अनुकूल पदार्थों से बननी चाहिए ताकि नंगे पैर चलने वाले श्रद्धालुओं, स्थानीय निवासियों, भेड़ पालकों, बच्चों और पालतू जानवरों को इसके उपयोग में परेशानी न हो। जहाँ-जहाँ संभव हो वहाँ सड़क के किनारे स्थानीय प्रजाति के पेड़ों को लगाना चाहिए। ये पेड़ वायु व ध्वनि प्रदूषण रोकने में मददगार होंगे और पैदल यात्रियों को छाया प्रदान करेंगे। यह वृक्षारोपण उस क्षति की भरपाई करने में भी मदद करेगा जो अब तक चौड़ीकरण के चलते हो चुकी है।
कोर्ट के आदेशानुसार, उसके आदेशों के अनुपालन की समीक्षा करने के लिए एच.पी.सी. को परियोजना अवधि तक बरकरार रखा जाएगा। अभी के हालातों को देखकर तो यही लगता है कि कमेटी के पास बहुत काम होगा जिसके लिए सदस्यों को अपना काफी समय देना होगा। पर कमेटी के कई सदस्य सरकारी कर्मचारी नहीं हैं इसलिए केवल आवागमन का व्यय दे देने मात्र से वे कैसे अपना समय इस कमेटी को दे पायेंगे, ये भी एक विचारणीय विषय है?
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