हिमाचल आपदा और बेलगाम विकास

हिमाचल प्रदेश 50 साल बाद एक बार फिर महाआपदा का सामना कर रहा है। 1973 में सतलुज का बहाव अवरुद्ध होने से प्रदेश में भारी नुकसान हुआ था। इस बार अलग अलग स्थानों में अब तक दो सौ से ज्यादा लोगों की मौत की पुष्टि सरकार ने की है। गैर सरकारी अनुमानों के मुताबिक चार सौ से ज्यादा लोग अब तक आपदा का शिकार हो चुके हैं; इनमें स्थानीय लोग, पर्यटक और नेपाल के मजदूर शामिल हैं। सरकारी और गैर सरकारी योजनाओं को 4700 करोड़ से अधिक के नुकसान का आँकलन किया गया है। दूरस्थ स्थानों में नुकसान का ब्योरा जुटाने का काम अभी जारी है। सरकार का अनुमान है कि, राज्य को 8000 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ है।

सरकार ने प्राथमिकता के तौर पर प्रदेश के अलग अलग स्थानों में फंसे एक लाख पर्यटकों का रेस्क्यू किया है। बंद सड़कों को कामचलाऊ बनाने का काम चल रहा है। सरकार के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती सेब का सीजन है। सीजन शुरू होने वाला है और 695 सड़कें अभी खोली जानी शेष हैं। यदि सेब समय से मंडियों तक नहीं पहुँचा तो बागवानों की कमर तो टूटेगी ही, सरकार को भी सियासी असंतोष का सामना करना पड़ेगा। आपदा से सबक लेते हुए सरकार ने अब नदियों के किनारे निर्माण को लेकर सख्त नियम बनाने की बात कही है। देखना यह होगा कि, उत्तराखंड की तरह ये कायदे प्रभावशाली लोगों के सामने बेअसर साबित होंगे या फिर हिमाचल वास्तव में नदियों को उनके रास्ते वापस लौटा देगा।

कैसे आई आपदा

मौसम विभाग के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में इस बार 24 जुलाई, 2023 को मानसून पहुँचा। जुलाई के दूसरे सप्ताह यानी सात जुलाई से राज्य में मूसलाधार बारिश शुरू हुई। राज्य मौसम केंद्र के निदेशक का कहना है कि, यह मूसलाधार बारिश पश्चिमी विक्षोभ और मानसूनी हवाओं के टकराने के कारण हुई। ठीक ऐसा ही 2013 में उत्तराखंड की महाआपदा के समय हुआ था। सरकार समेत कोई भी एजेंसी इस खतरे से निपटने को तैयार नहीं थीं। न ही मौसम की चेतावनी इतने पहले मिल पायी कि वे कुछ कर पाते। इसलिए राहत और बचाव के अभियान तत्काल शुरू नहीं हो पाए। पश्चिमी विक्षोभ और मानसूनी हवाओं के टकराने का संकट निपट गया है, लेकिन अब अतिवृष्टि की आए दिन हो रही घटनाएं चुनौती बनी हुई हैं।

कुल्लू-मनाली में सबसे ज्यादा नुकसान

इंटरनेट मीडिया में हिमाचल प्रदेश में कागज की नावों की तरह बहती गाड़ियों, ताश के पत्तों की तरह ढहते घरों और सड़कों के नदियों में समाने के दृश्य अब भी छाए हुए हैं। सबसे ज्यादा नुकसान ब्यास नदी के किनारे बसे कुल्लू और मनाली में हुआ है, जहाँ बस्तियाँ नदी किनारे तक पहुँच गई हैं। सतलुज, रावी, चिनाव में भी रिकार्डतोड़ पानी दर्ज किया गया। इसके अलावा सड़कों के निर्माण के लिए काटे गए पहाड़ों में जगह जगह भूस्खलन हुए हैं।

स्थानीय पर्यावरण कार्यकताओं का कहना है कि, ब्यास में आयी बाढ़ की तुलना 2000 में सतलुज में आयी की बाढ़ से की जा सकती है, जिसने रामपुर में नदी किनारे बसी आबादी में भारी नुकसान पहुँचाया था।

अवैज्ञानिक निर्माण और नदियों का रास्ता रोकना नुकसान का बड़ा कारण

पर्यावरणविदों का कहना है कि, आपदा के लिए बिजली परियोजनाओं की सुरंगें, कमजोर पहाड़ों को काटकर फोरलेन सड़कों का निर्माण, अवैध खनन, नदियों को डंपिंग जोन बनाना और पर्यटन के नाम पर अवैज्ञानिक और बेतरतीब निर्माण प्रमुख कारण हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि, मूसलाधार बारिश के बाद ब्यास में आए बेहिसाब पानी ने रास्ता बदल दिया और मनाली से मंडी के बीच नदी किनारे बनाए मकान, वाहन, जानवर और हाइवे बह गए। 

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, 2017 में हिमाचल प्रदेश में कुल 118 हाइड्रो प्रोजेक्टों में से 67 भूस्खलन वाले जोन में थे। इन प्रोजेक्टों के निर्माण के समय स्थानीय वाशिंदों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध भी किया था। लेकिन सरकार ने किसी की नहीं सुनी।

भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि, भूकंप के बाद भूस्खलन राज्य के सामने दूसरी बड़ी चुनौती है। 23 जुलाई, 2023 को जारी की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि, प्रदेश की कमजोर पहाड़ियों में अनुचित मानवीय गतिविधियों जैसे वनों की कटाई, सड़क काटने, सीढ़ी बनाने और अधिक गहन पानी की आवश्यकता वाली कृषि फसलें उगाने के कारण आपदा का खतरा बढ़ रहा है। रिपोर्ट में अचानक आने वाली बाढ़ की घटनाओं को सबसे बड़ी चुनौती माना गया है।

हिमाचल में हुई तबाही से सबक

हिमाचल में चौतरफा तबाही का सामना कर रही सरकार ने नदी-नालों के किनारे निर्माण के नियम सख्त करने की बात कही है। सरकार ने माना कि, नदियों के किनारे हुए निर्माण की वजह से तबाही कई गुना बढ़ गई। हिमाचल सरकार के मंत्रियों ने स्वयं नदियों के किनारे निर्माण और अवैध खनन को तबाही की जिम्मेदार ठहराया है। इसलिए शीघ्र ही नदी-नालों के किनारे निर्माण को लेकर नए नियम तैयार करने का प्रस्ताव लाया जा रहा है।

हिमाचल प्रदेश में 115 प्रतिशत अधिक बारिश जरूर हुई है पर गौर से देखें तो यह आपदा प्राकृतिक न हो कर मानव निर्मित है। मौसमी परिवर्तन के चलते आने वाले समय में अधिक सचेत रहने और समय रहते सही नीतिगत कदम उठाने कि सख्त आवश्यकता है। यह आवश्यकता केवल हिमाचल तक ही सीमित नहीं है। पहाड़ी राज्यों के अलावा अब मैदानी राज्यों का भी इन मुद्दों पर गौर करना आवश्यक हो गया है।

पूरन बिष्ट
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