आज उत्तराखंड स्थापना के बीस बर्ष पूरे हुए। इस अवसर पर ज्ञानिमा द्वारा आयोजित ‘उत्तराखंड विचार प्रतियोगिता’ के तहत हमें जो लेख प्राप्त हुए उनमें से चयनित लेखों को डॉ शेखर पाठक एवं श्री राजीव लोचन शाह ने पढ़ा और जिस लेख को उन्होंने सबसे उपयुक्त पाया वो लिखा है पुणे के श्री जीवन सिंह खाती ने। सभी भागीदारों को धन्यवाद देने के साथ साथ हम बधाई देते है खाती जी को जो अपनी जड़ों से इतने दूर रहते हुए भी अपनी जड़ों के बारे में सोचते हैं और उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए चिंतन करते हैं। प्रस्तुत है श्री जीवन सिंह खाती का लेख।
उत्तराखंड पौराणिक काल से ही देवो की स्थली रही है। देवी-देवताओं के अनेक अवतारों के देवत्व का प्राकृट्य की इस दैवीय भूमि को देवभूमि कहा गया। सृष्टि व जीवन के लौकिक व अलौकिक माहात्म को समझने हेतु ऋषि-मुनियों, महिर्षियों, तपस्वीयों व तत्वज्ञानियों ने इस पावन भूमि को अपनी साधना की कर्मभूमि बनाया। आज भी यह भूमि सत्य, शान्ति, धर्म, तीर्थ, मोक्ष, ज्ञान, योग व आध्यात्म के अनुगामीयों के लिए एक सर्वश्रेष्ठ स्थल हैं लेकिन आज के तेजी से बदलते युग में आर्थिक व सामाजिक लक्ष्यों को पाने व विकास की दौड़ में यह नवगठित राज्य अपनी बिषम भौगोलिकता, राजनैतिक उदासीनता व उपेक्षावश पिछड़ सा गया हैं। क्षेत्र के विकास की आवश्यकताओं, आशाओं व आक्षाओं की पूर्ति हेतु लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं और तरीके से जनमानस का पृथक राज्य गठन आंदोलन और बलिदान तो सफल हुआ। पर दुर्भाग्य और राजनैतिक दुर्बलताओं के चलते प्रदेश में आशानुकूल विकास नही हुआ। आज भी विकास की गति मंथर ही है। प्रदेश और प्रदेशवासी आज भी अनेकों समस्याओं से जूझ रहे हैं जिनके समाधान के लिए एक ‘आउट ऑफ बॉक्स थिकिंग’ रखने वाले एक कुशल नेतृत्व, वित्तिय प्रबंधन, योजनाओं का सजृन व क्रियान्वयन हेतु कुशल प्रशासनिक व्यवस्था की अपरिहार्य जरूरत हैं। आज राज्य के हर क्षेत्र के आर्थिक व सामाजिक पहलूओं पर अनेकों पहल करने की जरूरत हैं। लेकिन अगर हम प्राथमिकता या वरीयता क्रम से तीन पहलों की विवेचना करें तो वो तीन पहलें इस प्रकार से होगी.
- विकास – समावेशी, सर्वांगीण सतत् विकास (सस्टेनेबल डेवेलेपमेंट)
- शिक्षा – प्रसार व गुणवत्ता सुधार
- रोजगार व रिवर्स पलायन
विकास – समावेशी, सर्वांगीण सतत् विकास (सस्टेनेबल डेवेलेपमेंट)
सत्रहवी सदी में जब यूरोप में औद्योगिक क्रांति हुई तो ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली आदि देश विकास की दौड़ में आगे निकलने लगे। स्वीट्जरलैंड एक पहाड़ी देश अपनी बिषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण भारी कल-कारखाने नहीं लगा सकता था इसलिए विकास की दौड़ में पिछड़ने लगा। फिर वहाँ के बुद्धिजीवीयों और योजनाकारों ने गहन चितंन मनन कर विकास का ऐसा मॉडल दिया जिसने दुनिया में एक बेंचमार्क स्थापित कर अपनी धाक जमा दी जैसे स्वीस नॉइफ, स्वीस घडी़या, स्वीस बैंकिग, टूरिज्म एंड हास्पिटिलिटी, आदि। उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां भी कमोबेश स्वीट्जरलैंड के सदृश्य ही है अत: हमें भी ऐसे विकास के मॉडल खोजने, नई संभावनाएं तलाशनें व अपनाने चाहिए। आज विश्व का आर्थिक विकास कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के प्रथम चरण से होते हुए उद्योग आधारित से भी आगे निकल सेवा आधारित हो गया हैं अत: आज उत्तराखंड में बड़़ी इंडस्ट्रीज् लगाने के अलावा सर्विस बेस्ड इंडस्ट्रीज् लगायी जाएँ जो कि पहाडी़ क्षेत्रों में विकास व हमारे संवेदनशील हिमालयन पर्यावरण दोनों के लिए काफी अनुकूल हैं। प्रदेश के सर्वागीण विकास के लिए लघुकालिक और दीर्घकालिक विकास नीति बना कर योजनाओं का सही चरणबद्ध तरीके से क्रियान्वन होना चाहिए। शार्ट टर्म प्लानिंग में आधारभूत ढाचॉगत सुधार व विकास बहुत जरूरी है जिसमें सड़कें बिजली, पानी, प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार व परिवहन पर ध्यान देना होगा। लॉन्ग टर्म प्लानिंग में भारी उद्योग-धन्धे, विद्युत, नहर परियोजनाएं, महामार्ग व उच्चकोटि के संस्थानों के निर्माण की नीतियाँ होनी चाहिए। हमें पर्यटन, वानिकी, आर्गनिक कृषि-बागवानी इत्यादि पर जोर देना होगा।
शिक्षा – प्रसार व गुणवत्ता सुधार
पौराणिक काल से ही उत्तराखंड ज्ञान, शिक्षा व साधना केन्द्र रहा है। बद्रिकाश्रम, कण्वाश्रम जैसे अनेकों गुरूकुलों व आश्रमों की परम्परा का गौरवशाली अतीत उत्तराखंड की अमूल्य शैक्षिक सांस्कृतिक धरोहर है। वर्तमान में भी देश के अनेक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान जैसे लाल बहादुरशास्त्री प्रशासनिक शिक्षण संस्थान, राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, राष्ट्रीय पेट्रोलियम संस्थान, वानिकी संस्थान, आईआईटी, कृषि विश्वविद्यालय, आईआईएम, आरआईएमसी, दून, शेरवुड व सैनिक स्कूल आदि उत्तराखंड में ही स्थित है। राज्य में एक बहुत ही सशक्त ऐजुकेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर और ऐजुकेशनल कल्चर मौजूद हैं। बिडंबना है कि इतना सब होने के बावजूद भी आज उत्तराखंड के प्राथमिक, माध्यमिक व उच्चतर शिक्षा का स्तर और गुणवत्ता आशानुरूप नही हो पायी हैं।
केरल राज्य में उद्योगीकरण व कृषि के विस्तार की सीमाएँ बहुत सीमित हैं इसलिए वहाँ की सरकारों और लोगों ने शिक्षा और उसकी गुणवत्ता पर जोर देकर मानव संसाधनों (ह्यूमन रिसोर्स) का समुचित विकास किया। परिणामत: आज केरल के लोग देश-विदेश में रोजगार कर प्रतिमाह करोडो़ रूपये रिमिटेंस के रूप में घर भेज केरल को समृद्ध-सम्पन्न बना रहे हैं। इसलिए शिक्षा में प्रसार व गुणवत्ता लाने की पहल उत्तराखंड के लिए बहुत जरूरी़ हैं जिससे हमारे सभी क्षेत्रों में विकास होगा क्योंकि तरक्की के लिए सब संसाधनों में मानव संसाधन सर्वोपरि हैं।
रोजगार व रिवर्स पलायन
आज प्रदेश में तीसरी बड़ी पहल रोजगार के नये-नये अवसर पैदा कर पलायन रोकना हैं। पलायन को रोक कर लोगों को पुन: वापस लाना यानि पलायन को रिवर्स करना एक बड़ी चुनौती है। विकास और शिक्षा की पहलें भी रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण योगदान देगी। इसके अलावा पारम्परिक लघु-कुटीर उद्योगों, नई-नई तकनीक आधारित व्यवसायों, व्यापार और विविध स्वरोजगार के काम-धन्धों को प्रशिक्षण व वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
बेहत्तर सुख-सुविधा, साधन, संसाधन और जीवन यापन के सुअवसरों की तलाश पलायन के प्रमुख कारण रहे हैं। विगत कुछ वर्षों से पहाडी़ गाँवों से काफी तेजी व संख्या में पलायन हो रहा है। इंटरस्टेट माइग्रेशन यानि अन्य राज्यों में और इंट्रास्टेट माइग्रेशन यानि राज्य के ही मैदानी भागों मे पलायन बड़ा हैं जिससे डेमोग्राफी, सामाजिक संरचना व सीमाओं की सुरक्षा प्रभावित हो रही हैं। अब पलायन रोकथाम व रिवर्स पलायन के लिए एक व्यापक रोडमैप की बेहद दरकार हैं। अब अभाव, असुविधा, पिछड़ापन, बेरोजगारी को दूर कर सड़क, पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार, परिवहन जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए योजनाओं पर गहन चिंतन मनन कर क्रियान्वयन करना चाहिए। तभी प्रदेशवासीयों की आशाओं, उम्मीदों और आकांक्षाओं पूरा कर एक खुशहाल उत्तराखंड के सपने को साकार किया जा सकता हैं।
निष्कर्ष यह हैं कि उत्त्तराखंड के जल, जंगल, जमीन और जवानी सबका समुचित संवर्धन और समुचित विकास करने में ही उत्तराखंड का उज्जवल भविष्य निहित हैं।
श्री जीवन सिंह खाती का जन्म सन 1968 में सोमेश्वर (अल्मोड़ा जनपद) के झलोली-माला गाँव में हुआ। पिताजी डा. जवाहर सिंह खाती इलाके के सुप्रसिद्ध वैध थे। बड़े भाई साहब के सेना में होने के चलते वो बचपन से ही सैनिक बनने का सपना देखते थे इसलिए बड़े होने पर वो एक सैनिक के रूप में आर्मी मेडिकल कोर में भर्ती हो गए। सेना में रहते हुए पढाई जारी रख़ उन्होंने बीएससी (जीवविज्ञान) और एम.बी.ए. (एच आर) की पढ़ाई पूरी की। सेना में 30 साल की सेवा पूर्ण करने के बाद 2017 में ऑन. सूबेदार मेजर के पद से सेवानिवृत होकर श्री खाती बच्चों की उच्च शिक्षा पूरी कराने हेतु पुणे में अस्थायी रूप से रह रहे हैं। श्री खाती को बचपन से ही कविताएँ व कहानियाँ लिखने का शौक रहा है। सेवानिवृति के बाद वो नियमित रूप से लेखन कार्य में जुटे हैं और आशान्वित हैं की उनकी रचनाओं का शीघ्र प्रकाशन होगा।
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बहुत दिनों बाद फुर्सत से खाती जी लेख पढा,उत्तम विचार और उत्तराखंड की उन्नति के लिए एक अपनी सोच का बृस्तित खाका प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद।
खाती साहब मैं आपकी बातों से असहमति रखता हूँ क्योंकि विकास उर्ध्व गामी गामी होता है, अधोगामी नहीं। क्या हम भ्रष्टाचार की बुनियाद को सींच रहे हैं या उसका प्रतिरोध कर रहे हैंं? जब तक ग्राम प्रधान, पटवारी, ग्राम विकास अधिकारी, तहसीलदार, पुलिस चौकी, थाना, जूनियर इंजीनियर(सभी विभागों के) वन विभाग या यों कहें कि जनता से जुड़े सभी संस्थान भ्रष्टाचार मुक्त नहीं होते और सरकारी धन शतप्रतिशत आवंटित मद में खर्च नहीं होता तब तक विकास संभव नहीं।
महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा मेंअरवों रुपए खर्च करने बाद एक हजार रूपये का गुणवत्ता पूर्ण कार्य 90% ग्राम पंचायतें नहीं दिखा सकती। पिछले कुछ दिनों पहले एक पुराने परिचित मनरेगा के लाभर्थी से बात हुई, मेरे पूछने पर अब तो पैसा सीधे खाते में आ रहा है, इससे क्या अंन्तर आया? प्रत्युत्तर “पहले प्रधान जी अपना कमीशन काटकर पैसा देते थे और अब हम बैंक से निकालकर प्रधान जी को देते हैं”!
राजनैतिक प्राटियों के प्रतिनिधि इस लूट का हिस्सा इसलिए हैं, कि प्रधान किसी न किसी राजनैतिक दल का सदस्य होता है?