साझी उम्मीदों का 2021

बड़ा अजीब गुजरा सन 2020। कुछ लोगों के लिए इतना तेज की वो रफ्तार धीमी होने की आशा करते रह गए और कुछ लोगों के लिए इतने धीमे कि हर पल काटना मुश्किल हो गया। मानव इतिहास के पन्नों में सन 2020 एक अमिट छाप छोड़ गया – एक ऐसे वर्ष के रूप में जिसे हम भुलाना भी चाहें तो इतनी आसानी से भुला नहीं पायेंगे।

वर्ष 2020 तो चल गया पर कोविड19 का खतरा अब भी मंडरा रहा है। 2021 एक उम्मीद ले कर आया है कि कोविड19 का संकट टल जाएगा, कोई वाजीब समाधान निकल आएगा और मानवता की गाड़ी फिर अग्रसर होगी। उम्मीद हैं 2020 ने जो सिखाया वो हम भूलेंगे नहीं।

हमने उत्तराखंड के विभिन्न इलाकों में रहने वाले साथियों से पूछा कि उनके कार्यक्षेत्रों व सपनों के संदर्भ में सन 2021 से उन्हें क्या उम्मीदें हैं। उन्हीं उम्मीदों को साझा करते हुए हम आशा करते हैं की 2021 आपके जीवन को नई स्फूर्ति और रंगों से भर दे।

प्रभात उप्रेती सेवानिवृत प्राध्यापक हैं। पिथौरागढ़ में रहते हुए उन्होंने अकेले ही पॉलिथीन के खिलाफ जंग छेड़ दी जिस कारण अधिकांश लोग उन्हें पॉलिथीन बाबा के रूप में भी जानते हैं। वो लेखक व कवि हैं और वर्तमान में हल्द्वानी में रहते हैं।

“मेरा सपना है मुझे इलहाम हो जाय, मै सबके दुख तथास्तु कह दूर कर सकूं, मेरी सारी प्रकाशकों के पास फंसी किताबें छप जाएँ, देश के सारे नेताओं को अक्ल आ जाए, बेहरम कोरोना भाग जाए, सबको अपना हक मिल जाए और मैं लजीज खाना खाते अपनी किताब पढ़ कर खूब महफिल जमाऊँ। इस बेवकूफी से भरी दुनिया और समाज को भी अक्ल आ जाए। सब भय रहित हा हा हा ही ही ही कर गपशप करें। सबकी खिड़की खुली रहे और ये सब महज सपना सपना न रह जाए।”

पुष्पा चौहान ने ग्राम प्रधान के रूप में सफल भूमिका निभाने के बाद उत्तरकाशी में विनायक समूह का गठन  कर आसपास के गाँवों में महिलाओं के साथ मिलकर महिला स्वावलम्बन का बीड़ा उठाया है। विनायक समूह के इस प्रयोग को महिला सशक्तिकरण के बेहतर प्रयोग के रूप में देखा जा सकता है।

“2021 का सपना बहुत बड़ा है। हमारे समूह के केंद्र में गाँव की वो समस्त महिलायें हैं जिनके अंदर अपार  क्षमताएँ व सीखने की इच्छा है। मैं विनायक समूह को आने वाले वर्षों में क्षेत्र के मातृ समूह के रूप में देखना चाहूँगी। मैं चाहती हूँ की जिस तरह से एक माँ अपने बच्चे को जीवन पर्यन्त स्नेह, आश्रय, सुरक्षा की छाँव देती है वही भूमिका क्षेत्र की तमाम महिला समूहों को हमारा समूह देने की स्थिति में हो। वर्तमान में हमारा समूह एक टिन शेड से संचालित हो रहा है। हम इस स्थल को स्वयं सहायता समूहों के क्षमता विकास केंद्र और उत्पादन केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। 2021 में भवन निर्माण के लिए संसाधनों को इकठ्ठा करने की कवायद आरम्भ की जाएगी। समूह की महिला साथी सीता देवी का सपना है की हम एक छोटा टेम्पो ले आयें और उसे हम महिलाएँ ही चलायें। कोई और चलाए या ना चलाए, मैं तो अवश्य चलाऊँगी और हम स्वयं अपना सामान टेम्पो में गाँव गाँव तक ले जाएँ। मेरा सपना यह भी है की मल्लीताल, नैनीताल की तर्ज पर सुबह सुबह 6 बजे मुख्य बाजार उत्तरकाशी में गाँव के विभिन्न उत्पादों की मंडी/हाट लगाई जाए। इसे हम अभी अपने ही गाँव से शुरू करना चाहते हैं। जो भी परिणाम आते है उसके आधार पर इसे एक क्लस्टर के रूप में विकसित करना हमारा लक्ष्य है।”

हिमांशु जोशी एक आईटी प्रोफेशनल हैं जो उत्तराखंड वापस आ कर कोटबाग़ में प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। वो भविष्य में फार्मस्टे की ओर भी अपना ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं।

“मेरी  यह आकांक्षा है की 2021 में लोगों की किसानों के बारे में धारणा बदलें। समाज को किसानी को भी अन्य आदर्श व्यवसायों की तरह देखने की ज़रुरत है। जैसा कि बाकी व्यवसायों में होता है, आप पैसा दे कर व्यवसायी से उसका सामान या उसकी सर्विसेज लेते हैं। लेकिन यही बात किसान के लिए लागू नहीं है। आम धारणा यह है कि किसान को किसी चीज़ की ज़रुरत नहीं होती है। वो अपना अनाज, फल सब्ज़ी इत्यादि बाँटने के लिए उगाता है। इसके एवज़ में उसे कुछ थोड़ा बहुत दे दो या ना भी दो तो कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता। यह सोच बदलने की ज़रुरत है। किसान का भी परिवार होता है। उसको भी स्वास्थ सम्बन्धी समस्याओं से जूझना होता है। उसके बच्चे भी अच्छे स्कूल में पढ़ने का हक़ रखते हैं। वह भी समुद्र के किनारे अपने बच्चों के साथ घूमने जाने का मन रख सकता है।

व्यक्तिगत तौर पर, मेरी महत्वाकांक्षा यह है की मैं अपनी ज़मीन और अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग कर सकूँ। कोशिश यह रहेगी की मेरे खेतों में प्रकृति के साथ एक ऐसा सामंजस्य स्थापित हो जाए की मेरे हर कदम को प्रकृति स्वतः ही 10 कदम आगे बढ़ा दे।“

चिया बिष्ट आर्यमन विक्रम बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ लर्निंग, हल्द्वानी में कक्षा 9 की छात्रा हैं। लेखन, संगीत और नई-नई पुस्तकें पढ़ना इनकी रुचि है।   

“कड़ी चुनौतियों और कठिनाइयों के बाद 2020 का साल जा चुका है। कोविड19 जैसे जानलेवा वाइरस के कारण 2020 ने इतिहास के पन्नों में तो जगह बनाई परंतु अपने साथ भय को भी लोगों के ह्रदय स्थान दे दिया। जब मैं 2021 की ओर देखती हूँ तो मुझे आशीर्वाद और बधाइयों से भरा नव वर्ष दिखाई देता है परंतु एक ऐसा साल जहां हर व्यक्ति सुरक्शित महसूस करता हो। मैं एक ऐसे साल का सपना देखती हूँ जहां प्रत्येक जन बिना किसी संकोच के खुली हवा का आनंद ले सकें और जहां मै और मेरी उम्र का हर एक बच्चा खिल कर और मुस्कुरा कर विद्यालय वापस जा सके। एक ऐसा साल जहां बच्चों को अपने ही घर मेँ बंधक की तरह न रहना पड़े। परंतु जब तक यह सर्वव्यापी  महामारी पूरी तरह एमआईटी नही जाती मैं ऐसे भविष्य के सिर्फ कल्पना ही कर सकती हूँ, सिर्फ कल्पना!”

राजू गुसाईं एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो आर.टी.आई. के माध्यम से भी सामाजिक न्याय और जागरूकता के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। ऋषिकेश में बीटलस् आश्रम को पुनर्जीवित करने में उन्होंने एक अहम भूमिका निभाई।

“ऑनलाइन मीडिया के चलते प्रिन्ट मीडिया की स्थिति पहले से ही खराब थी, कोरोना काल में यह स्थिति और भी बदतर हो गई है। आमदनी इतनी कम हो गई है की प्रिन्ट मीडिया को अपने पैर पर खड़ा रहना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में जरूरत है की प्रिन्ट मीडिया को बचाने के लिए सार्थक प्रयास हों। मसला केवल इस माध्यम से जुड़े लोगों की आजीविका का ही नहीं है। मसला संचार के एक महत्वपूर्ण माध्यम को जीवित रखने का भी है।“

संजीव शाह एक आईटी प्रोफेशनल हैं जिन्होंने जोशीमठ वापस आकर निजी व्यवसाय की नींव रखी। उनकी हास्पिटैलिटी और बेकिंग में भी गहरी रुचि हैं। 

वर्ष 2020 ने व्यवसाय को बुरी तरह प्रभावित किया है। लगता है संभलने में समय लगेगा। आशा है 2021 सबको संभलने और अपने पैरों पर वापस खड़े होने का मौका देगा। व्यक्तिगत तौर पर कहूँ तो मुझे 2021 से उम्मीदें हैं। आशा है 2021 मुझे एक नई शुरुआत करने का मौका प्रदान करेगा।“

डॉ कृष्ण कुमार पाण्डे आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं और उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत हैं। उनकी रुचि और शोध का खास विषय है – हमारे स्वास्थ्य पर आहार व दिनचर्या का प्रभाव।

“प्राकृतिक जीवनशैली के सिद्धांतों को और अधिक लोग दैनिक जीवन में अपनाएँ। जनसामान्य सामान्य रोगों में औषधियों के बजाय दिनचर्या, आहार में बदलाव, योग, पथ्य को प्राथमिकता दें। इमरजेंसी के अतिरिक्त अन्य सभी रोगों हेतु आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को प्राथमिकता मिले। सरकार भी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के प्रोमोशन के लिए बजट में बढ़ोतरी करे।“

अभिनव नौटियाल सर् बायोटेक इंडिया में उपाध्यक्ष के पद पर कार्यरत हैं। उनकी कंपनी ने  अल्मोड़ा व देहरादून में रीटेल और हौस्पिटैलिटी के क्षेत्र में निवेश किया है।

“इस बदले परिवेश में मुख्यमंत्री को व्यवसायियों से हर छह महीने में मिल कर उनकी परेशानियों को समझने का प्रयास करना चाहिए। व्यवसाय को सुगम बनाने के प्रोजेक्टों में एन.ओ.सी. की कागजी कार्यवाही तो कम करना चाहिए। भवन निर्माण से लिए खदान की अनुमति की आवश्यकता को खत्म किया जाना चाहिए तथा स्वीकृत परियोजनाओं के लिए पेड़ हटाने की प्रक्रिया का सरलीकरण किया जाना चाहिए।“

विनीता यशस्वी युवा छायाकार हैं। अपने छायाचित्रों और लेखो के माध्यम से, पर्यावरण और खास कर महिलाओं से जुड़े मुद्दों को उठाती रहती हैं। वर्तमान में नैनीताल समाचार के ऑनलाइन प्रबंधन में सक्रिय हैं।

“साल 2020 के फरवरी अंत में जब मैंने पहली बार कोरोना बिमारी का नाम सुना तो मुझे हँसी आ गयी। पर समय बदलते देर नहीं लगी और धीरे-धीरे कोविड-19 की भयावहता नजर आने लगी। जिस बिमारी के नाम पर मुझे हंसी आयी थी उसी बिमारी ने मेरे बहुत करीबी प्रियजनों को मुझसे छीन लिया और कुछ लोग तो आज भी अस्पताल में अपनी जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे हैं।

कोविड-19 के बारे में कुछ बताने का समय अब जा चुका है पर हाँ इस बिमारी ने हमारी तंगहाल चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोल दी। बहुत से लोगों ने सिर्फ इसलिये जान गवाँई क्योंकि उनको सही इलाज नहीं मिला और कुछों की जान इसलिये चली गयी क्योंकि उनको वो इलाज नहीं मिला जिसकी उन्हें जरूरत थी। कई लोग तो सिर्फ इसलिये मारे गये क्योंकि कोविड महामारी के डर से डॉक्टरों ने मरीज को देखा तक नहीं। अभी भी कोविड से पीछा छूटता नजर नहीं आ रहा है इसलिये मेरा आने वाले साल के लिये सिर्फ इतना ही सपना है कि हमारी चिकित्सा व्यवस्था में सुधार आये ताकि आने वाले समय में लोगों को बिना वजह अपनी जान न गँवानी पड़े। कोविड से पीछा छूटे फिलहाल तो मैं यही चाहती हूँ और यही सपना भी है।“

रजनीश जैन बेरीनाग स्थित अवनी संस्था के संस्थापक हैं। उनकी खास रुचि पिरुल पर चलने वाले गैसिफायर हैं जिसमें पिरुल के उपयोग से बिजली उत्पादित की जाती है। अवनी संस्था टेक्सटाइल, प्राकृतिक रंगों, सौर ऊर्जा इत्यादि क्षेत्रों में कार्य करती है।

मेरी हार्दिक इच्छा है की सरकारी नीतियाँ ऐसी बने जो संस्थाओं और संगठनों को नियंत्रित करने की जगह सशक्त करने की दिशा में काम करें। सरकार जो कहती है वह सिर्फ कहने के लिए न हो और वह अपनी कथनी के विपरीत काम न करे। उदाहरणार्थ, राज्य की लघु और सूक्ष्म उद्योग नीतियों को सिंगल विंडो के अंतर्गत रेजिस्ट्रैशन के लिए लोगों को बहुत मशक्कत करनी पड़ती है। एम.एस.एम.ई. पोर्टल के जरिए अन्य विभागों से तो एन.ओ.सी. मिल जाता है पर उनके स्वयं के सब्सिडी रेजिस्ट्रैशन के लिए सिंगल विंडो काम नहीं करता। अगर इस तरह की विषमताओं को दूर कर लिया जाए तो पिरुल नीति के अंतर्गत अंतर्गत उद्यमिता और रोजगार के सृजन की अपार संभावनाएं हैं।”

महेश डोनिया, सौन गाँव चौखुटिया-गेवाड़ निवासी पेशे से स्तंभकार और अनुवादक हैं। सामाजिक सरोकारों और दलित चेतना विमर्श को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाली अंग्रेजी की राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में सम्पादन से जुड़े हैं और वर्तमान में वसुंधरा गाजियाबाद से कार्य कर रहे हैं।

“जब भी कोई मुझसे पूछता है तुम्हारा क्या सपना है, मैं गजबजा सा जाता हूँ। क्या कहूँ, क्या जवाब दूँ। मेरा तो ऐसा कोई सपना था ही नहीं कि घोडा-गाड़ी हो, कोठी हो, बैंक बैलेंस हो, कहीं रिज़ॉर्ट हो, बच्चे विदेश में सैटल हों। आप भी कहेंगे क्या आदमी है? बोरिंग, नीरस, है न? 

लेकिन मेरा एक सपना ज़रूर था और है: एक प्रबुद्ध भारत का सपना। वो सपना जो संविधान निर्माता बाबासाहेब आंबेडकर ने 70 वर्ष पहले देखा था – एक ऐसे समाज का निर्माण जो समानता, बंधुत्व, स्वतंत्रता पसंद हो, जो ज्ञानशील हो, तर्कशील हो, जो वैज्ञानिक चेतना का वाहक हो, जहाँ जातिगत शोषण न हो, किसी तरह की वंचना न हो। ये सपना कोई यूटोपिया नहीं था। इस सपने को धरातल पर उतारा जा सकता था। लेकिन यह क्यों नहीं हो पाया? मेरे सामने क्या, यह यक्ष प्रश्न हर उस देशवासी, हर नागरिक के सामने मुँह बाये खड़ा है। जो संवेदनशील है वे, देश में जो घट रहा है उसे देखकर बेहद चिंतित है और अपने-अपने स्तर पर लड़ भी रहे हैं। उन्हीं नागरिकों की तरह मेरा भी यही एक मुकम्मल सपना है। इस सपने को कोई ताकत, कोई विपदा मुझसे नहीं छीन सकती। इसे मैं यूँ ही देखता रहूँगा।”

गीता गेरोला लेखिका, कवियात्री और स्त्री आन्दोलन से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता है। उत्तराखंड में महिला समाख्या अभियान का राज्य स्तर पर संयोजन करते हुए महिला सशक्तीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

“2020 दुनिया भर के लिए दुख,अवसाद और परेशानियों में गुजरा। लोगों के घर छूटे, रोजगार छूटा, इष्ट मित्र, स्नेही जनों के जाने का सदमा सहना पड़ा। ऐसे मुश्किल वक़्त में एक दूसरे के कंधे पर हाथ रख कर सांत्वना भी न दे सके। सारे आयोजन, सुखद काम, पढ़ाई, नौकरी, सारे लोगों को घरों में बंध कर रहना पड़ा। अस्पतालों के सिवाय सब कुछ एकदम बंद। जहाज, रेलें, टैक्सियां, बसें नहीं चलीं । उनको चलाने वाले, बनाने वाले, उनकी मरम्मत करने वाले भी बेरोजगार हो गये। ऑनलाइन सारे कामो को करने की कोशिशें होती रही, लेकिन दुनिया के सारे काम ऑनलाइन नहीं किए जा सकते। बच्चों की जिंदगी का एक कीमती साल जिसमें उनके जाने कितने जीवन कौशल विकसित होते घरों में बंद मोबाइल टेलीविजन के सामने बैठे ख़तम हो गया। घरों में बंद बच्चे खेलने, जन्मदिन मनाने हुड़दंग मचाने को तरस गये।

पूरी दुनिया के समाज, लोग बरसों पिछड़ गए। पूरे दिन खाना बनाते घर के सारे काम निबटाते महिलाओं की हालत खराब हो गई। सभी निजी स्पेस के लिए तरस गये। कवियों, साहित्यकारों, भाषण वीरों ने दिन रात ऑनलाइन रह कर जीना मुहाल कर दिया।

वैसे तो मुझे कभी भी ऐसा नहीं लगा कि साल बदलने पर जिंदगी में कुछ बदल जाता है। वक़्त कभी भी अपना रंग दिखा कर हमे अवाक् कर देता है। फिर भी अगर मुझे 2021 में कुछ नया चाहिए है तो वो है अपने संवैधानिक अधिकार। किसानों के लिए तीनो बिलों की वापसी। समाज में एक दूसरे को सहजता और स्वतंत्रता से जीने का स्थान। खुद कें लिए स्वस्थ शरीर जिससे जीवन की चुनौतियां खुशी से गुजर जाएँ। दुआ है कि आने वाले साल में खुशियों भरे दिन लौटें।”

प्रदीप राणा ग्राम द्योनाई, गरुड़ के रहने वाले हैं और एक साइकलिस्ट के रूप में मशहूर हैं। 2017 में 162 दिन में 18300 किलोमीटर साइकिलिंग कर उन्होंने एक विश्व कीर्तिमान स्थापित किया।

“मैं 2021 में ट्रांस हिमालयन साइकिलिंगकरना चाहता हूँ। अमृतसर से शुरू हो कर जम्मू, हिमाचल, उत्तराखंड, नेपाल, भूटान, वेस्ट बंगाल, सिक्किम होते हुए अरुणांचल तक साइकलिंग करना चाहता हूँ। जितना मैंने इन चार सालों में घूम कर सीखा है वो मैं लोगों के साथ शेयर करना चाहता हूँ, एक गाइड बन कर। मेरा मन है की अपने उत्तराखंड की जो अच्छी जगहें हैं वहाँ बाहरी लोगों को ला कर टुरिज़म बढ़ाने में मदद कर सकूँ जिससे यहाँ रोजगार बढ़े और लोगों को बाहर ना जाना पड़े। हमारा उत्तराखंड पूरे वर्ल्ड में फेमस हो जाए।”

राजेन्द्र प्रसाद दुग-नाकुरी, बागेश्वर के निवासी हैं। हिन्दी में कुमाऊँ विश्वविद्यालय से पीएचडी उपाधि लेकर इस वर्ष उत्तराखंड उच्च शिक्षा विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए हैं।

“2021 को लेकर मेरे सपने का मुख्य अंग उस जागरण के बाद का तनावरहित और खुशनुमा जीवन जीना है जो मैं कई समय से जीना चाहता था। काफी लंबी और तनावभरी यात्रा के बाद इस बार मैं 2021 में उस खुशी और तरोताजगी से प्रवेश कर रहा हूँ, जो मैं कई वर्षों से सोचता था। इसलिए 2021 में मैं अपनी उच्च शिक्षा में चयन होने की सफलता का भरपूर आनन्द अपने परिवार, बच्चों, माता-पिता और मित्रों के साथ जी भर के जी लेना चाहता हूँ। मैं 2021 में महसूस करना चाहता हूँ मेहनत की मिठास, जो दुनिया की किसी मिठाई में नहीं, मैं महसूस करना चाहता हूँ अपने चेहरे और आँखों में चमक जो दुनिया के किसी क्रीम में नहीं।”

निरंजन सुयाल चकराता में जीवविज्ञान के अध्यापक हैं। पश्चिमी तिब्बत समेत हिमालय के अनेक हिस्सों की पदयात्रा कर हिमालयी जनजीवन को करीब से देखने और समझने की कोशिश करते रहे हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लेखन से अपने अनुभवों को साझा करना शौक है।

“जून मध्य में कोरोना काल के हालात पर मेरे एक अनुज की टिप्पणी “भाई जी! आदमी बेहताशा, बहुत तेजी से भाग रहा है, समझो इसने सब पर रोक लगा दी है” साल के अंत में भी ज़हन में उभर रही है। तभी महानगरों से अपने गृह स्थलों को पद यात्रा कर रहे लोग भी स्मृति में आ जाते हैं। तेजी से भाग रही दुनिया में उनका स्थान कहाँ है, पता नहीं। असमंजस बना हुआ है।

एक शिक्षक की दृष्टि से भी पठन-पाठन की दुनिया भी बदली बदली नज़र आ रही है। नैतिकता के पैमाने बदल गए हैं। मसलन छोटे बच्चों को मोबाइल फोन से दूर रखने की नसीहत धरी की धरी रह गई है। आनलाइन शब्द विभिन्न क्षेत्रों में पूरी ठसक के साथ पसर चुका है। यह भी दिख रहा है कि इस भागमभाग में कई लोग पीछे ही रह गए हैं खासकर उत्तराखंड के वो क्षेत्र जो फोन नेटवर्क से बाहर हैं।

उहापोह की स्थिति में विरोधाभास को जीवन का अहम हिस्सा मानते हुए उम्मीद ही आगे बढ़ाती है। गिर्दा की ‘एक दिन त आलो’ में और वीरेन डंगवाल के ‘उजले दिन जरूर आएंगे में’ यही आस 2021 के लिए जिजीविषा बनाए रखेगी।”

भास्कर उप्रेती प्रशिक्षक और समीक्षक हैं। सामाजिक मुद्दों पर लेखन करते रहे हैं। लंबे समय तक पत्रकारिता मे सक्रिय रहने के बाद वर्तमान में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन, रानीखेत में कार्यरत हैं।

“मैं ख़्वाहिश रखता हूँ और सब्जबाग बुनता हूँ कि दुनिया की नैसर्गिक गति जो है वो उधर को ही जाए। लोगों का कॉमन गुड का कॉमन सेंस जागृत हो। एक दूसरे से बोलना, सुनना, समझना और परस्पर साहचर्य बढ़े। ताजे सवाल अंकुरित हों। मनुष्यों की यही स्वाभाविक नियति है। मनुष्य अपनी स्वाभाविकता को हासिल कर पाए। स्थापित व्यवस्था को जवाब यही है। मौजूदा संस्कृति और सभ्यता का थोपा गया ताना-बाना भी ऐसे ही आचरण से चैलेंज होगा।

सूचना तकनीक को customized करके ही अगर यह व्यवस्था ऑक्सीजन पा रही है, मैं चाहूँगा इस दुधारी तलवार को लोकहित में काम करने वाले भी इस्तेमाल करना सीख जाएँ। मगर, मैं ये भी चाहूँगा कि जनमानस बड़ी तकनीक, संगठित तकनीक, एप्स, गैजेट्स और सब कुछ तय किए गए का जाल भेदकर बाहर खुली हवा में भी आएँ।

एक छोटे से वायरस ने समझने वालों को या समझ सकने वालों को यह तो सिखाया है कि मनुष्य की धरती पर हैसियत बहुत छोटी है। वह बेहद निरीह प्राणी है, जो प्रकृति की उदारता के दम पर ही इतरा रहा है। तो यह शिक्षा भी बढ़ाई जानी चाहिए कि प्रकृति को चुनौती देने की बजाय वह उससे तादात्यम करना सीखे। प्रकृति से इजाजत लेकर नवोन्मेष करे। मनुष्य अपने सीखे हुए को एक बार डस्टबिन में फेंककर तो देखे। फिर से सीखने के लिए तो उद्द्त हो। एवोल्यूशन की नई रचना करने को तैयार हो। यह धरती फिर से बेहतर बनाई जा सकती है। आज के दिन तो यह कूड़े का ढेर है, जो बुरी तरह बास मार रही है।”

सुप्रिया नैनीताल की रहने वाली हैं और महाराजा सय्याजी राव यूनिवरसिटी, बडोदरा मेँ भूगर्भ विज्ञान की छात्रा हैं। दोस्तों के साथ नई नई जगहों को देखने, ट्रेकिंग, पेटिंग करने और पाश्चात्य संगीत मेँ इनकी गहरी रुचि हैं। कहानियाँ और उपन्यास पढ़ना इनको बहुत अच्छा लगता है।

“साल 2020 समूची दुनियां में एक सूक्ष्म विषाणु की धमक से लेकर नए तरीके से कक्षाओं मेँ हमारी भागीदारी  और एक दूसरे से दूरियाँ बनाने के दबाव को लेकर कई मायनों मेँ बहुत अप्रत्याशित रहा। इसने हमें रूपांतरित कर खास तरीके से जीने को बाध्य कर दिया है। बहुत संभव है कि ये सब हमारे साथ 2021 में भी बना रहे। हर किसी की तरह मैं भी यही चाहूँगी कि यह हालात जल्दी बदलें और हम सब नए साल मेँ एक बार फिर एक दूसरे का हाथ पकड़ स्वाभाविक मानवीय रिश्तों को मजबूत करने मेँ जुट जाएँ। मुझे आशा है कि हमारे ऑनलाइन शिक्षा प्लेटफार्म पूर्वाग्रहों से बाहर निकल विविधतापूर्ण और बेहतर सामग्री लायेंगे/बनायेंगे। सभी विषयों मेँ कुछ रोचक पाठ्यक्रम और कार्यशालाएँ उपलब्ध होंगे। दुनियाँ मेँ उपलब्ध ऑनलाइन कौर्सेस से सीख कर मेँ अपना कौशल बढ़ाऊँ। मेरा सपना है कि मैं 2021 मेँ खुद को और अपने चारों ओर लोगों को एक खुशहाल दुनिया मेँ खुश होते हुए देखूँ।“

गिरीश चन्द्र सिंह नेगी नौगांव, कफड़ा के निवासी और पेशे से वन-पारिस्थितिकी वैज्ञानिक है। दीर्घस्थायी विकास और परंपरागत ज्ञान को लेकर अनेक अंतर्राष्ट्रिय पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखते रहे हैं।

“उत्तराखंड का निवासी एवं पर्यावरण व पारिस्तिथि विज्ञान का छात्र होने के नाते मेरा नजरिया यह है कि उत्तराखंड के भौतिक, प्राकृतिक, मानवीय एवं नैसर्गिक संसाधनों का महत्तम उपयोग इन संसाधनों की वहन क्षमता के अंतर्गत हो। इसके लिए इन संसाधनों की वैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक समझ विकसित करनी होगी। उपरोक्त कथन लिखने में तो आसान है किन्तु क्रियान्वित करने में कठिन। अतः उत्तराखंड के पर्यावरण संगत विकास हेतु कृषि, पशुपालन, बागवानी, ऊर्जाश्रोत, स्वरोजगार, जल संरक्षण, भूस्खलन जैसे तत्कालिक मुद्दों को जनता के साथ रायसुमारी करके हल करना होगा। जनता के परंपरागत ज्ञान का नीति निर्धारण मे समावेश करना होगा।“

कमल जोशी उत्तराखंड सेवा निधि, अल्मोड़ा में कार्यरत हैं। सामाजिक कार्यकलापों के अलावा वह लेखन का कार्य  भी करते हैं। भ्रमण में उनकी खास रुचि है।

“पहला सपना तो यही है कि नये साल, 2021, में भारत और विश्व कोविड19 महामारी के भय, आशंकाओं और अर्थव्यवस्थाओं पर पड़े बुरे असर से उबर सकेंगे। दूसरा सपना, इस दौर के अनुभव से सीखकर लोग अपने, अपनों के तथा दूसरे इंसान/जीवों के जीवन का महत्व समझने की कोशिश करेंगे। विकास के बारे में सोचते और कदम बढ़ाते समय सरकार, गैर-सरकारी संस्थायें अवश्य ध्यान में रखेंगे कि विकास की मंजिल क्या/कहाँ है तथा जो रास्ता वे चुन रहे हैं क्या उस मंजिल तक पहुँचा पायेगा या उल्टी दिशा में ले जायेगा। क्या केवल रुपये में विकास को मापा जाना ठीक है या जीवन की गुणवत्ता बेहतर होने को विकास समझा जाय या कुछ अन्य?

जीवन की बात करें तो शारीरिक, मानसिक और आत्मिक पक्षों में सबका विकास ज़रूरी है। उत्तराखंड के गाँव की बात करें तो जल, जंगल और ज़मीन की बुनियाद पर ही टिकाऊ विकास और खुशहाली आ सकती है। लेकिन युवा पीढ़ी को इनमें अब कम रुचि है और उनकी आकांक्षाओं का गला घोंटे बिना उन्हें जल, जंगल और ज़मीन से भी कैसे जोड़ कर रखा जाय, यह विचार करना चाहिए। कोविड महामारी के कारण पलायन करके गए लोग अपने गाँव वापस आये लेकिन आजीविका के साधन नहीं होने के कारण अधिकांश फिर शहर को चले गये या जाने के इंतज़ार में हैं। उचित नीति के द्वारा हम पहाड़ के पानी और जवानी को रोक पायें, एक सपना यह भी है।”

कृष्ण कुमार पांडे, चंपावत के निवासी हैं और भारतीय वन विज्ञान एवं प्रौड्योगीकी संस्थान, बंगुलुरु में प्रमुख वैज्ञानिक हैं। हाल ही में दुनिया के 90 शीर्ष वन-विज्ञानियों में चुने गए हैं।

“हालाँकि वर्ष 2020 एक असाधारण रूप से कठिन  वर्ष रहा है, इस वर्ष के अनुभवों ने हमें महत्वपूर्ण शिक्षा दी है तथा कुछ हद तक बढ़ते भौतिकवाद के प्रति लोगों को सोचने पर मज़बूर  किया है। वर्ष 2021 और भविष्य के लिए में आशान्वित हूँ। मुझे विश्वास है की हम 2020 के अनुभव के बल पर एक सौहार्दपूर्ण एवं सहिष्णु समाज की ओर अग्रसर होंगे।“ 

हिमांशु जोशी सामाजिक सरोकारों से जुड़े युवा लेखक हैं। विभिन्न स्थानीय और क्षेत्रीय अखबारों और पत्रिकाओं में सामाजिक मुद्दों को उठाते रहे हैं। वर्तमान में राजकीय सेवा में नैनीताल में कार्यरत हैं।

“तो मियां 2021 भी आ गया। कोरोना-कोरोना करते 2020 कोहराम मचा गया और वायरस के नए रूप ने 2021 के भविष्य पर भी काले बादल लगा लिए हैं।

बात चली है 2021 की तो अब मेरे रिज़्यूम में 50+ आलेख हैं। खुद पर थोड़ा बहुत भरोसा है और डॉक्टर गिरिजा शंकर मुंगली जी की हिमालय की चोटी चढ़ते कहानी है। कोरोना संक्रमित होने के बाद जो डर मन में पालती मार बैठ गया था 2021 में उस डर पर झंडा फहरा सफलता के नए गीत लिखने हैं और अपने सारे सम्बन्धियों, गुरुओं के स्वास्थ्य कुशलता की कामना के लिए भगवान को धन्यवाद देते रहना है।”

अरण्यरंजन हैवलघाटी, टिहरी गढ़वाल के नवोन्मेशी, सक्रिय युवा सामाजिक कार्यकर्ता हैं। लंबे समय से उत्तराखंड में पदयात्राओं के माध्यम से समाज को समझने की कोशिश में लगे अरण्यरंजन ने स्थानीय उत्पादों और व्यंजनों को लेकर माउंटटेन कनेक्ट, पहाड़ की रसोई और समौण के नाम से खाड़ी, जाजल में स्थानीय स्तर पर आजीविका के क्षेत्र में नया प्रयोग किया है और युवाओं को स्वावलंबन के लिए प्रेरित करते रहे हैं।

“वर्ष 2020 से पहले जिज्ञासा रहती थी कि 2020 कैसा होगा। संयुक्त राष्ट्र सहित कई देशों ने 2020 के लिये अपने लक्ष्य तय किये हुये थे। उन लक्ष्यों तक पहुँचने या न पहुँचने की समीक्षा अभी की जानी है। इस वर्ष ने सम्पूर्ण मानव जाति को कई सबक एक साथ दे दिये हैं। इस साल ने मानव के भौतिकता पर घमंड को चकनाचूर किया है। यह सबक बहुत कठोरता और निर्ममता से दिया है कि सामान्य आखों से न दिख पाने वाले पिद्दी सा कोविड वाइरस सम्पूर्ण मानव जाति के अस्तित्व को डिगा सकता है।

यह वर्ष मानव-जाति के लिये वेकप काल के साथ चेतावनी भी है। अपनी विलासिता की क्षुधा को मिटाने के लिये प्रकृति के साथ अनंत समय तक दोहन व शोषण नहीं किया जा सकता है। जीवन और प्रकृति के बीच प्रतिस्पर्धा नहीं बल्कि सहभागिता से ही पृथ्वी पर जीवन को बचाया जा सकता है। खुशहाल जीवन के लिये सह अस्तित्व को स्वीकारने के सिवा कोई सक्षम विकल्प नहीं है। जीवन को जितना अधिक प्रकृति के निकट रखेगें और भौतिकता को सीमित करेंगे जीवन बेहतर बनेगा।“

रोहित मेलकनी युवा छायाकार है। घुमक्कड़ी करते हुए जिंदगी को कैमरे में कैद करना इनका शगल है। वर्तमान में परिवहन विभाग, अलमोड़ा में कार्यरत हैं।

“2021 को लेकर मेरा सपना है कि मैं फिर से पुरानी दिनचर्या में आ जाऊँ जिसमें न मास्क था, ना सैनिटाइज़र था, ना सोशल डिस्टेनसिंग थी। चाहता हूँ की मैं फिर से स्वतंत्र होकर हर जगह जा सकूँ, अपनों से हाथ मिला सकूँ, हर जगह बेरोकटोक खा सकूँ। वर्ष 2020 में पूरे साल जो मेरा कैमरा मौन रहा, वो 2021 में जोर जोर से बोले और मैं उत्तराखंड व देश के विभिन्न स्थानों की फोटो क्लिक कर सकूँ।“

गौरव पांडे ने इंजीनियरींग की पढ़ाई करने के बाद संगीत को अपने कैरियर के रूप में चुना है। हल्द्वानी निवासी  गौरव लोकसंगीत में कई नए प्रयोग के द्वारा लोकप्रिय यू-ट्यूबर के रूप मे उभरे हैं।

“एक आधुनिक लोक गायक होने के नाते मैं यह सोचता हूँ कि वर्ष 2021 तक सर्वप्रथम यह कोरोना रूपी जड़ जो सम्पूर्ण देश में पैर जमा चुकी है उसका शीघ्र पतन हो। हम सभी स्वस्थ हों और सं सभी लोक गायक अपने कार्यक्रम संचालित कर सकें।

मेरा मानना है की जितने भी लोक गायक सफलता की सीढ़ी पर खड़े हैं वह अन्य लोक गायकों का मार्गदर्शन करें जिन्होंने संगीत जगत में अभी आगाज़ किया है। इससे संगीत की कड़ी मजबूत होगी।

2021 में मेरा प्रयास रहेगा की मैं अधिक से अधिक गाँवों से जुड़ पाऊँ तथा वहाँ के लोगों के विचारों को समझ कर उन्हें अपने गीतों में पिरो कर मंच के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचा सकूँ।“

ज्योति शाह मूलतः इतिहास अध्येता है। शक्ति साप्ताहिक की ऐतिहासिक भूमिका पर बेहतरीन शोध किया है और वर्तमान मे दीनदयाल उपाध्याय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सीतापुर में इतिहास पढ़ाती हैं।

“सपना देखना मनुष्य की फितरत होती है। सपने ही लक्ष्य तय करते हैं। सपने समय के साथ बदलते जाते हैं। एक व्यक्ति अपने जीवन में बचपन और जवानी में बहुत सपने देखता है, ऐसा नहीं है कि अधेड़ावस्था में सपने नहीं देखे जाते, परन्तु अधेड़ावस्था बचपन और जवानी में देखे गए सपनों के पुनर्विवेचन और वर्तमान में उसकी सार्थकता का विश्लेषण करने का वक्त है।

प्रत्येक वर्ष के प्रारम्भ में कुछ सपने देखती हूँ। इस वर्ष भी सपना है कि कोई ऐसी शोध परियोजना प्रारम्भ करूँ, जिसके माध्यम से सामाजिक विकास में योगदान दे सकूँ। साहित्य और संगीत को समय दे सकूँ। खूब किताबें पढ सकूँ और किसी नई जगह की यात्रा कर सकूँ। नये मित्र बना सकूँ और पुराने मित्रों के सम्पर्क में रह सकूँ। सबसे जरूरी है कि किसी रूकावट या बाधा के बिना सपने साकार कर सकूँ।”

कुछ साथियों ने अपने विचार कविताओं के माध्यम से साझा किए –

दिनेश उपाध्याय कवि, लेखक, कलाकार और सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता है। कुमाऊँ मण्डल विकास निगम से सेवानिवृत होने के उपरान्त नैनीताल समाचार में सक्रिय हैं।

युद्ध सख्त है, पर यही वक्त है
अन्धेरे को उजालों ने चारों तरफ से घेरा है
बढ़े चलो इन उम्मीदों के संग, कुछ कदमों पे सवेरा है;
खिलाफ तानाशाही के, लोकतंत्र हो हासिल
बस इत्ता सपना मेरा है”

महेंद्र बिष्ट छात्र जीवन से सामाजिक सरोकारों और सामाजिक विमर्शों से जुड़े हैं। वर्तमान मे देहरादून में वरिष्ठ बैंक अधिकारी हैं।

कि आने वाले दिन, मौसमों के दिन हों
मुस्कुराने के दिन हों, गुनगुनाने के दिन हों,
जूझने के दिनों के बाद जीतने के दिन हों,
हमारे दिन हों!”

प्रहलाद अधिकारी आईटी सलाहकार है और मुम्बई में रहते हैं। उत्तराखंड में होमस्टे का विकास करने हेतु उन्होंने अपने साथियों के साथ मिल कर सोलस्टे नामक संस्था की शुरुआत की है। 

“नए वर्ष में गम के सारे बादल छंट जाएँ,
नई उमंग से जीवन रण में फिर से डट जाएँ।
अंश भीड़ का नहीं बनें, छोड़ें इन कतारों को
स्वावलम्बन की राह गढ़ें, जोड़ें नए विचारों को।
हाथों को फिर से काम मिले, मिले रोटी दो जून की,
सुबह सुहानी हो फिर से, और नींद रात में सुकून की।  
नफरत की दीवार गिरा, कुटुम्ब बने फिर से
वसुधा धरती उगले सोना फिर से,
अंबर से फिर बरसे सुधा।
भूख, प्यास, लाचारी के, दाग पटल से धुल जाएँ 
सपनों की कड़ियों में एक-दो, मेरे भी सपने जुड़ जाएँ।”

ज्ञानिमा की कहें तो एक बड़े ही विचित्र दौर में ज्ञानिमा का जन्म हुआ। कोरोना के चलते हम ऑनलाइन माध्यम में ही सिमट कर रह गए। आशा है की 2021 में हम ऑफलाइन माध्यम से वह सब कर सकेंगे जो ज्ञानिमा के सपने का हिस्सा थे।

एक बार फिर आप सभी को 2021 की ढेर सारी शुभकामनाएँ। आपके सभी सपने साकार हों!

संपादकीय
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