उत्तराखंड की कर्मठ महिलाएँ – 2

जितना श्रम यह महिलायें करती आईं हैं, या करती रही हैं, उतना श्रम शायद ही कोई अन्य करता होगा। अगर इनके श्रम को जी.डी.पी. के संदर्भ में आँका जाए तो शायद आँकलन काफी चौकाने वाला होगा। यह फोटो फ़ीचर इस कड़ी का दूसरा भाग है जो इन जुझारू और कर्मठ महिलाओं की दिनचर्या को दर्शाता है।

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उत्तराखंड की कर्मठ महिलाएँ – 1

वैसे तो पूरे विश्व की महिलाएँ काफ़ी कामकाज़ी रही हैं पर पर्वतीय महिलाओं की ज़िन्दगी उनसे कुछ ज़्यादा ही काम करवाती आयीं है। कठिन भूगोल के कारण पर्वतीय महिलाओं को साधारण कार्य में भी पूरी क़मर तोड़ परिश्रम की आवकश्यता पड़ती है। यह फोटो फ़ीचर उत्तराखंड की कर्मठ महिलाओं के अभिन्न योगदान का चित्रण है।

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हरित क्रांति के नाम एक खुला पत्र

हरित क्रांति का जनक श्री एम एस स्वामीनाथन को लिखा यह पत्र खेती को लेकर भास्कर सावे जी के विचारों का अच्छा प्रस्तुतीकरण है। पत्र में भास्कर जी लिखते हैं – मैं आशा करता हूँ यह पत्र इस गंभीर विषय पर आत्मविश्लेषण और खुले विचार विमर्श को प्रोत्साहित करेगा ताकि हम उन भारी भूलों को ना दोहराएँ जिनके कारण आज हम अव्यवस्था के दलदल में फँस से गए हैं।

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पहाड़ों में मशरूम की खेती – क्या करें और क्या नहीं!

श्री विनोद पांडे मशरूम को एक वनस्पति विज्ञानी और उद्यमी के रूप में गहराई से समझते हैं। इस लेख में हम उनसे मशरूम की खेती के उन पहलूओं के बारे में बातें करेंगे जिसे जानना एक किसान या उद्यमी के लिए बहुत जरूरी है।

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उत्तराखंड के पहाड़ों में मशरूम – इतिहास और भविष्य

सत्तर के दशक से ही पहाड़ों में मशरूम उत्पादन द्वारा रोजगार के वैकल्पिक तरीकों को बढ़ाने की कोशिश होती रही है। पर मशरूम की खेती परंपरागत खेती से पूरी तरह भिन्न है। इसमें तकनीक की प्रधानता है इसलिए उत्पादकों को ठीक से तकनीक को समझना और अपनाना आवश्यक है।

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खेती का उत्सव – हिलजातरा

ग्रामीण जीवन में मनोरंजन की दॄष्टि से लोक नाट्यों का महत्वपूर्ण स्थान है। कुमाऊँ की सोर घाटी में आयोजित होने वाली हिलजातरा ऐसा ही एक लोकनाट्य है। खेतों में हाड़ तोड़ मेहनत से फसल की बुआई और उसके बाद कटाई से उपजा सुख लोक मनोरंजन के ऐसे तत्व है जो इस लोकनाट्य का संसार बुनते हैं।

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