तिब्बती व्यापारी

भारतीय हिमालयी सरहदों के ऊँचाई वाले इलाकों में रहने वाले समुदायों का तिब्बती समाज से गहरा रिश्ता रहा है। वर्ष 1957 में अमेरिकी फिल्मकार जे माईकल हैगोपियन ने जाड व्यापारियों के जीवन पर ‘तिब्बतन ट्रेडर्स’नाम से महत्वपूर्ण वृतचित्र बनाया था जिसका ज्ञानिमा ने हिंदी रूपांतरण किया है।

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स्टीव कट्टस की जरूरी फिल्में

कहते हैं कि चित्र भाषा के मोहताज नहीं होते। कि एक चित्र में कई हजार शब्द छिपे होते है। आधुनिक युग में एनिमेशन फिल्मों ने इस विचार को एक नया आयाम दिया है। इस लेख के जरिए हम आपको एक ऐसे फिल्मकार से रूबरू करा रहे हैं जो एनिमेशन फिल्मों को लेकर आपकी राय हमेशा के लिए बदल देगा।

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जिन्दगी आसान है!

जिंदगी जटिल है या आसान? क्या हम खुद ही अपनी जिन्दगी को जटिल बनाते हैं? इस बारे बहुत लोगों ने बहुत कुछ कहा है पर थायलैंड के किसान जोन जंदाई का मत काफी भिन्न है। उनके कहने में सादगी भी है और सच्चाई भी। यह अलग बात है कि जिस आसानी की बात वे कह रहे हैं वह बहुत आसान लगने के साथ साथ बहुत कठिन भी है।

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अनुमति, सहमति और रेप कल्चर

बलात्कारी अचानक पैदा नहीं होते। वे यहीं होते हैं, हमारे बीच। बलात्कारी प्रवृति भी कोई पैदाइशी दोष नहीं है। दरअसल वह हमारी सामूहिक मानसिकता का ही एक परिणाम है। झंडा डंडा ले कर दोषी को सजा देने के लिए हम आंदोलित तो हो जाते हैं पर समस्या के मूलभूत निवारण की बात पर चुप्पी मार लेते हैं।

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महामारी और इतिहास से सबक

महामारियों का मिजाज और फैलाव का तरीका हमेशा से अकल्पनीय रहा है। सामाजिक और जीव-उद्विकास की अब तक की कहानी भी यही बताती है कि एक बार अस्तित्व में आ जाने के बाद विषाणु का समाप्त होना असंभव है। यानि दुनियाँ में उसका अस्तित्व हमेशा बना रहेगा। अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा होने पर वह बार-बार फैल कर समाज को आतंकित करता रहेगा। हमारे ऐतिहासिक अनुभव भी हमें यही बतलाते रहे हैं।

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उत्तराखंड की कर्मठ महिलाएँ – 2

जितना श्रम यह महिलायें करती आईं हैं, या करती रही हैं, उतना श्रम शायद ही कोई अन्य करता होगा। अगर इनके श्रम को जी.डी.पी. के संदर्भ में आँका जाए तो शायद आँकलन काफी चौकाने वाला होगा। यह फोटो फ़ीचर इस कड़ी का दूसरा भाग है जो इन जुझारू और कर्मठ महिलाओं की दिनचर्या को दर्शाता है।

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उत्तराखंड की कर्मठ महिलाएँ – 1

वैसे तो पूरे विश्व की महिलाएँ काफ़ी कामकाज़ी रही हैं पर पर्वतीय महिलाओं की ज़िन्दगी उनसे कुछ ज़्यादा ही काम करवाती आयीं है। कठिन भूगोल के कारण पर्वतीय महिलाओं को साधारण कार्य में भी पूरी क़मर तोड़ परिश्रम की आवकश्यता पड़ती है। यह फोटो फ़ीचर उत्तराखंड की कर्मठ महिलाओं के अभिन्न योगदान का चित्रण है।

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शौका और राजस्थानी भाषा का अंतर्संबंध

उत्तराखंड की उत्तरी सीमा से लगी घाटियों के लोगों की संस्कृति के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। भारत तिब्बत व्यापार खत्म होने के पश्चात इन घाटियाँ की संस्कृति ही नहीं बोली/भाषा भी लुप्त होने की कगार पर हैं। सभी घाटियों के निवासी अपनी संस्कृति को बचाने के विभिन्न प्रयास कर रहे हैं। जोहार घाटी की शौका बोली को संरक्षित करने के सिलसिले में श्री गजेन्द्र सिंह पाँगती से एक बातचीत।

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गोरीपार का धर्मेन्द्र

कुछ दिन पहले एक युवा कलाकार से मुलाकात हुई – धर्मेन्द्र जेष्ठा। फिर यूट्यूब पर धर्मेन्द्र का काम देखा। अपने कैमरे के माध्यम से मुझे वह उन जगहों पर ले गया जिसके बारे हम अक्सर सोचते रह जाते हैं – वहाँ, उस पहाड़ी के पीछे का दृश्य कैसा होगा ?

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एक शहर का बनना और बिखरना

नैनीताल शहर से मेरा वर्षों का नहीं बल्कि सदियों का नाता रहा है। मेरे पुरखे और मैं इस शहर को बनते और बिखरते देखते आये हैं। कभी कभी तो लगता है की मेरा नैनीताल इतना बिखर गया है कि यह अपना सा नहीं लगता।

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