इवान डोमिनिक इलिच एक दार्शनिक, धार्मिक विचारक, और सामाजिक आलोचक थे जो स्व-निर्देशित शिक्षा, या स्वशिक्षण, के बारे में अपने विचारों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके सबसे प्रभावशाली विचारों में से एक है ‘समाज की डीस्कूलिंग’। इलिच का मानना था कि पारंपरिक शिक्षा प्रणालियाँ अक्सर असली शिक्षा और व्यक्तिगत विकास को रोक देती हैं।
इवान इलिच की सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली किताबों में से एक ‘डीस्कूलिंग सोसाइटी’ है, जिसका प्रकाशन 1971 में हुआ था। इस किताब में इलिच जिन विचारों और तर्कों को प्रस्तुत करते हैं वह हमें पारंपरिक शिक्षा संस्थानों की समस्याओं के साथ-साथ शिक्षा और सीखने के तरीके के प्रति हमारे दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य कर देती है। उनकी पुस्तक ने शिक्षा के बारे में चर्चाओं पर दीर्घकालिक प्रभाव डाला है। साथ ही यह पुस्तक शिक्षा के सिद्धांत, समाजशास्त्र, और दर्शन के क्षेत्रों में भी प्रभावशाली रही है।
उनके डीस्कूलिंग संबंधित महत्वपूर्ण विचार निम्न हैं:
1. शिक्षा – एक व्यक्तिगत प्रयास है
इलिच मानते थे कि हमें संस्थानों द्वारा निर्धारित मानक पाठ्यक्रम का बंधक नहीं बनना चाहिए। विद्यार्थियों को अपने निजी शिक्षा लक्ष्यों और रुचियों का पालन करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। वह ‘वन-साइज-फिट्स-ऑल’ शिक्षा प्रणाली, यानि सबके लिए एक ही मान्य तरीका अपनाने की जगह व्यक्तिगत और स्व-निर्देशित शिक्षा को प्राथमिकता देने का समर्थन करते थे।
2. आधुनिक शिक्षा व्यवस्था का एकाधिकार खत्म हो
इवान इलिच शिक्षा की पारंपरिक व्यवस्था के एकाधिकार के आलोचक थे। उनका मानना था कि समाज को व्यक्तिगत शिक्षा के लिए पुस्तकालय, समुदायिक केंद्र, अपरेंटिसशिप तथा अन्य अनौपचारिक माध्यमों को प्रोत्साहित करना चाहिए। उनका मानना था की शिक्षा और संसाधनों की विविधता विद्यार्थीयों को व्यक्तिगत शिक्षा के लिए अपने निजी मार्ग को चुनने की स्वतंत्रता देती है।
3. शिक्षकों की नई भूमिका
इलिच को शिक्षकों की पारंपरिक भूमिका मान्य नहीं थी। उनका कहना था की शिक्षकों को ज्ञान प्रदान करने के लिए विशेषज्ञ के रूप में नहीं अपितु प्रशिक्षक और मार्गदर्शक के रूप में काम करने की जरूरत है। ऐसा करते हुए वे शिक्षार्थियों की रुचियों की पहचान कर उनमें विचारशीलता विकसित करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
4. जीवनपर्यंत शिक्षा की जरूरत
इलिच ने जीवनपर्यंत शिक्षाकी जरूरत को महत्वपूर्ण माना। उनका कहना था कि बचपन और किशोरावस्था तक ही औपचारिक शिक्षा के सीमित रखना समाज के हित में नहीं है। उनका मानना था कि बदलती रुचियों और आवश्यकताओं के कारण हमें जीवन के सभी चरणों में शिक्षा की जरूरत रहती है। औपचारिक शिक्षा व्यवस्था ने जीवनपर्यंत शिक्षा के द्वार बंद कर रखे हैं।
5. शिक्षा में नेटवर्किंग और समुदाय की आवश्यकता
इवान इलिच का मानना था की ज्ञानोपार्जन में समाज, समुदायों और नेटवर्कों की अहम भूमिका है। उनका मानना था कि हम एक-दूसरे से अनौपचारिक ढंग से बहुत कुछ सीखते हैं, और सीख सकते हैं। ऐसी शिक्षा पारंपरिक शैक्षिक संस्थानों में अक्सर संभव नहीं होती। इस रास्ते को अनदेखा कर हम स्वयं ज्ञानवर्धन के मार्गों को सीमित कर देते हैं।
इलिच के डीस्कूलिंग के विचारों को जहाँ एक ओर बहुत लोगों ने विवादास्पद माना वहीं उन्हें अनगिनत प्रशंसक भी मिले। जहाँ एक ओर लोगों ने माना की उनके विचार समाज और शिक्षा व्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं वहीं कई लोग उनके विचारों को अवास्तविक और समाज के लिए घातक मानते रहे हैं। इस सब के बावजूद उनके विचार शिक्षण पर समकालीन चर्चा और वैकल्पिक शिक्षा की दिशा को प्रभावित करते हैं। विज्ञान और टेक्नॉलजी के कारण तीव्र गति से बदल रहे समाज और सामाजिक सोच के दौर में इवान इलिच के विचार और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
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